राजस्थान सियासी संकट: सचिन पायलट गुट के बागी विधायकों की वापसी से गहलोत गुट में तनाव
एक महीने से अधिक दिन तक चले सियासी संग्राम के बाद अशोक गहलोत सरकार का संकट फौरी तौर पर भले ही शांत हो गया। लेकिन अभी भी गहलोत के लिए राह आसान नहीं दिख रही है। विधायकों व संगठन के बीच समन्वय कायम करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है। सचिन पायलट खेमे के बागी विधायकों की वापसी से गहलोत खेमें में नाराजगी हैं।
वहीं, गहलोत ने भी भूलो, माफ करो और आगे बढ़ो का सन्देश देकर नाराज विधायकों को मनाने की कोशिश की है। सवाल यही है कि इस सन्देश के बाद क्या गहलोत समर्थक बागी विधायकों को माफ़ कर सकेंगे। कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद बगावत थम तो गई, लेकिन सीएम के सामने कई चुनौतियां है। जहां एक तरफ उन्हें अपने समर्थक विधायकों को मनाए रखना है, वहीं दूसरी तरफ बागी विधायकों की मांगों को पूरा करना है। सीएम के समक्ष संतुलन कायम करना सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके साथ ही और सवाल हैं जो उनके के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं हैं।
कैसे पूरी करेंगे समर्थक विधायकों की उम्मीदें
गहलोत के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि बगावात के दौर में जो समर्थक विधायक एकजुट बने रहे। जिनकी वजह से गहलोत की कुर्सी बच सकी उनकी उम्मीदों को कैसे पूरा किया जाए। साफ है कि इनमें से कुछ विधायक मंत्री पद और राजनीतिक नियुक्ति चाहते होंगे। विधायकों में यह डर भी जरुर बना होगा कि कहीं उन्हें मिलने वाले पद बागी विधायकों को ना मिल जाए।
आगामी समय में सत्ता और संगठन में होने वाले फेरबदल में अपने समर्थकों के साथ ही पायलट खेमे को कैसे संतुष्ट करेंगे। इन विधायकों को गहलोत खेमे के विधायक पार्टी में कोई भी पद देने पर विरोध करेंगे। पार्टी में जगह देना ख़ुद गहलोत के लिए जिम्मेदारी का विषय बन जाएगा। ऐसे में गहलोत के लिए संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी ।
उठ सकते हैं विरोध के स्वर
अब अगर पायलट समर्थकों को सम्मान मिलता है तो गहलोत समर्थक वो विधायक नाराज हो जाएंगे जो उनकी कुर्सी बरकरार रखने के लिए कभी जैसलमेर तो कभी जयपुर में बाड़ेबंदी में रहे। ऐसे में साफ है कि गहलोत समर्थक विधायकों की नहीं सुनी गयी तो पार्टी में एक बार फिर विरोध के स्वर उठ जाएंगे। अपनी सरकार बचा कर गहलोत ने पार्टी में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है। यहां उनका कद और भी बड़ा होता नज़र आ रहा है ।