इंसान की आत्मा आखिर क्यों होती है 21 ग्राम की…
प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि मृत्यु के पश्चात् इंसान एक लंबे सफर पर निकल पड़ता है. ये सफर बहुत कठिन होता है जिसमें वो सूर्य देवता की नाव पर सवार होकर ‘हॉल ऑफ डबल ट्रूथ’ तक जाता है. किंवदंतियों के अनुसार, सच्चाई की जानकारी पता करने वाले इस हॉल में आत्मा का लेखा-जोखा देखा जाता है, तथा उसका निर्णय होता है. यहां सच तथा इन्साफ की देवी की कलम के वजन की अपेक्षा व्यक्ति के दिल के वजन से की जाती है.
प्राचीन मिस्र के व्यक्तियों का मानना था कि व्यक्ति के सभी भले तथा बुरे कर्मों का हिसाब उसके दिल पर लिखा जाता है. यदि व्यक्ति ने सादा तथा बिना कपट के जीवन बिताया है, तो उसकी आत्मा का वजन पंख की भांति कम होगा, तथा उसे ओसिरिस के स्वर्ग में हमेशा के लिए स्थान प्राप्त हो जाएगा. मिस्र की इस प्राचीन मान्यता की एक झलक 1907 में ‘जर्नल ऑफ द अमरीकन सोसाइटी फॉर साइकिक रीसर्च’ में छपे एक शोध में प्राप्त हुई है.
साथ ही ‘हाइपोथेसिस ऑन द सबस्टेन्स ऑफ द सोल अलॉन्ग विद एक्सपेरिमेन्टल एविडेन्स फॉर द एग्जिस्टेंस ऑफ सैड सब्जेक्ट’ नाम के इस शोध में व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा से जुड़े प्रयोग पर चर्चा की गई थी. वही इस शोध से संबंधित एक लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में मार्च 1907 में छपा जिसमें साफ़ रूप से लिखा गया था कि डॉक्टरों को लगता है कि आत्मा का भी निर्धारित वजन होता है. इसमें डॉक्टर डंकन मैकडॉगल नाम के एक फिजिशियन के प्रयोग के बारे में चर्चा थी. तथा किये गए शोध में ये जानकारी प्राप्त हुई है.