कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन ज्यादा संक्रामक तो हैं, लेकिन घातक नहीं

ब्रिटेन में मिले कोरोना वयारस के दो नए स्ट्रेन ने लोगों की नींद उड़ा दी है। इस बीच पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि नए स्ट्रेन पहले वाले वयारस से ज्यादा संक्रामक तो हैं, लेकिन घातक नहीं।

बदलावों ने बढ़ार्ई चिंता : ब्रिटेन में कोरोना का पहला नया स्ट्रेन सितंबर में केंट प्रांत में सामने आया था। दूसरा दक्षिण अफ्रीका से वहां पहुंचा है। ब्रिटेन वाले कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के जेनेटिक कोड में 23 बदलाव हुए हैं। कोरोना वायरस से कील की तरह चिपके रहने वाले स्पाइक प्रोटीन में हुए बदलावों ने विज्ञानियों र्की चिंता बढ़ा दी, क्योंकि ज्यादातर वैक्सीन इन्हीं स्पाइक को लक्षित करके विकसित की जा रही हैं। साथ ही स्पाइक में बदलाव से वायरस के ज्यादा घातक होने की आशंका भी बढ़ गई। ब्रिटेन सरकार ने नए स्ट्रेन के 70 फीसद ज्यादा संक्रामक होने का दावा किया था, तो लंदन स्थित सेंटर फॉर मैथेमेटिकल मॉर्डंलग ऑफ इंफेक्शियस डिजिज के अध्ययन में नए स्ट्रेन के 56 फीसद ज्यादा संक्रामक होने की बात कही गई थी।

3,538 लोगों पर हुआ अध्ययन : ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवा से संबद्ध पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के अध्ययन में 1,769 ऐसे लोगों को शामिल किया गया जो कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन से संक्रमित थे, जबकि इतनी ही संख्या में उन लोगों को भी शामिल किया गया जो पुराने स्ट्रेन से संक्रमित थे। अध्ययन में शामिल लोगों की उम्र, लिंग, आवासीय क्षेत्र व जांच के समय आदि का अनुपात भी बराबर रखा गया। 42 लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जिनमें 16 नए स्ट्रेन से संक्रमित थे, जबकि 26 पुराने से। मरने वाले 12 नए स्ट्रेन से संक्रमिक थे, जबकि 10 की मौत पुराने स्ट्रेन से हुई।

दोबारा संक्रमित होने का खतरा : विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस के पुराने व नए स्ट्रेन के प्रभावों की तुलना की गई। 28 दिनों के तुलनात्मक अध्ययन में पुराने व नए स्ट्रेन के कारण संक्रमित होने वालों के अस्पताल में भर्ती होने और मौतों के आंकड़ों में कुछ ज्यादा फर्क नहीं दिखा। हालांकि, अध्ययन में दावा किया गया है कि नए स्ट्रेन से दोबारा संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है। साथ ही ये संपर्क में आने वाले लोगों को ज्यादा तेजी से संक्रमित करते हैं।

भारत के लिए ज्यादा उपयुक्त होगी : ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ब्रिटेन सरकार ने बुधवार को ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को हरी झंडी दे दी है। भारत के लिए यह बड़ी खुशखबरी है। इस वैक्सीन का उत्पादन पुणे स्थित दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कर रही है। पूर्व की घोषणा के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट में उत्पादित होने वाली कुल वैक्सीन के 50 फीसद का इस्तेमाल भारत में ही किया जाएगा।

एडेनोवायरस से तैयार हुई कोविशील्ड : सीरम भारत में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का निर्माण कोविशील्ड के नाम से कर रही है। यर्ह ंचपांजी के कॉमन कोल्ड वायरस से तैयार हुई है, जिसे एडेनोवायरस भी कहा जाता है। हालांकि, इसमें बदलाव भी किए गए हैं, ताकि मनुष्यों को नुकसान न पहुंचा सके। जब इस वैक्सीन को मनुष्य में लगाया जाता है तो यह इम्यून प्रणाली को एंटीबॉडी बनाने का संकेत देती है, ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को खत्म किया जा सके। दरअसल, वैक्सीन के निर्माण का फॉर्मूला ऑक्सफोर्डएस्ट्राजेनेका के पास पहले से ही मौजूद था, जिसमें बदलाव करके कोरोना की काट निकाली गई।

देश के लिए कैसे है मुफीद : मॉडर्ना की वैक्सीन के भंडारण के लिए माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत है, जबकि फाइजर के लिए माइनस 70 डिग्री सेल्सियस की। दूसरी तरफ, ऑक्सफोर्डएस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को सामान्य रेफ्रिजरेटर तापमान पर रखा जा सकता है। यानी, यह 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर छह महीने तक सुरक्षित रह सकती है। इस प्रकार ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के लिए देश में विशेष कोल्ड चेन की जरूरत नहीं होगी। वैक्सीन का परीक्षण भारत में भी हुआ है और निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट में हो रहा है। ऐसे में यह भारत में सहज ही उपलब्ध भी हो जाएगी। कीमत 300 रुपये के करीब रहने का अनुमान है।

 

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