कोरोना ने सब कुछ थामा, बस एक सियासत चलती रही

देश में कोरोना को 10 महीने से ज्यादा वक्त हो गया, शुरुआती दौर में कुछ महीने सब कुछ थमा सा रहा, फिर धीरे-धीरे जिंदगी ढर्रे पर लौट आई। हालांकि अब भी कोरोना का खतरा बरकरार है, लेकिन तमाम ऐहतियात के साथ सब कुछ लगभग सामान्य की ओर अग्रसर है। दिलचस्प बात यह कि महामारी के इस दौर में एक चीज नहीं थमी, वह है सियासत। साल की शुरुआत में मुख्यमंत्री के एक एलान ने 20 साल के एक बड़े चुनावी मुददे को अंजाम तक पहुंचा विपक्ष कांग्रेस को बैकफुट पर धकेल दिया, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में लगे अड़ंगे ने उनकी खुद की गणित भी गड़बड़ा दी। जब कोरोना चरम पर था, तब और कुछ नहीं तो महामारी के पीड़ि‍तों को लेकर ही बयानवीर आपस में उलझते रहे। आखिरी तिमाही में भाजपा और कांग्रेस, दोनों पुराने रंग में लौट आए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा देवभूमि में चुनावी शंखनाद करने पहुंचे, तो वजूद के लिए जूझ रही कांग्रेस को ऑक्सीजन देने का जिम्मा नए प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने संभाला।

त्रिवेंद्र का मास्टर स्ट्रोक, गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी

एक साल पहले जब 2020 ने एंट्री ली, सब कुछ वैसा ही था, जैसा हर साल होता आया है, मगर ढाई महीने बीतते-बीतते कोविड-19 के विषाणु ने देवभूमि में भी पैर पसारने शुरू कर दिए। जब यहां पहला पॉजिटिव केस सामने आया, गैरसैंण में विधानसभा सत्र बस होकर ही निबटा था। यह सत्र इस मायने में यादगार रहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अचानक गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान कर दिया। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के मानचित्र पर 27 वें राज्य के रूप में अवतरित हुआ, तब देहरादून को अस्थायी राजधानी बनाया गया। फिर 20 साल तक हर चुनाव में गैरसैंण को मुद्दा बनाकर सियासत होती रही। जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अचानक घोषणा की, विपक्ष छोडि़ए, उनकी अपनी ही पार्टी के विधायक भी चौंक गए। कांग्रेस की हालत तो ऐसी, जैसे काटो तो खून नहीं। कारण भी वाजिब, जिस गैरसैंण के मुद्दे पर चार लोकसभा और इतने ही विधानसभा चुनाव लड़े, वह अचानक हाथ से फिसल जाए, तो ऐसा ही होना था।

टलता रहा मंत्रिमंडल विस्तार, अलबत्ता बंटे दायित्व

विधानसभा सत्र से ठीक पहले फरवरी में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने मंत्रिमंडल विस्तार पर हामी भरी। प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष से ग्रीन सिग्नल लेकर आ चुके थे, खुद मीडिया से तब उन्होंने यह बात कही, मगर विधानसभा सत्र के बाद विस्तार का फैसला किया। सत्र तो ठीकठाक गुजर गया, मगर इसके तुरंत बाद कोरोना का साया ऐसा फैला कि सब कुछ ठप सा पड़ गया। लाजिमी तौर पर, इन हालात में तो मंत्रिमंडल विस्तार का सवाल ही नहीं था। यह बात दीगर है कि भाजपा के 40 से ज्यादा विधायकों को इस वजह से मायूस होना पड़ा। हालांकि जब साल के अंतिम तीन महीनों में एक बार फिर चर्चा चली तो कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के कारण मामला आगे के लिए टल गया। अब आलम यह कि अगले विधानसभा चुनाव को बस सालभर का ही वक्त बाकी है, शायद अब तो विधायक भी इस बात से गुरेज करें कि उन्हें मंत्री बनाया जाए। इतना जरूर है कि कोरोनाकाल में भी मंत्री के दर्जे के दायित्वधारियों के आंकड़ों में इजाफा होता गया, जो अब 65 पार कर चुका है।

चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी

उत्तराखंड में साल 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। स्वाभाविक रूप से दोनों पार्टियां अब पूरी तरह चुनावी मोड में नजर आ रही हैं। इस साल इन दोनों पार्टियों ने अपने नए प्रदेश प्रभारियों की नियुक्ति की। भाजपा ने राज्यसभा सदस्य व राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत कुमार गौतम को प्रदेश प्रभारी तथा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा वर्मा को सह प्रभारी का जिम्मा दिया। उधर, कांग्रेस ने प्रभारी के रूप में युवा चेहरे देवेंद्र यादव को दायित्व सौंपा। यादव राजस्थान में अपनी सांगठनिक क्षमता का लोहा मनवा चुके हैं। दरअसल, अगले विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस के समक्ष अलग-अलग तरह की चुनौती है। भाजपा पर अपने पिछले चुनावी प्रदर्शन, यानी 70 में से 57 सीटों पर जीत, को दोहराने का दबाव है। इसके उलट कांग्रेस का संघर्ष उसके अस्तित्व से जुड़ा है। पार्टी पिछली बार महज 11 ही सीटें जीत पाई थी।

चार दिन प्रवास कर चुनावी शंखनाद कर गए जेपी नड्डा

चुनावी तैयारी के क्रम में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हाल ही में उत्तराखंड के चार दिन के प्रवास पर रहे। इस दौरान उन्होंने कुल 13 कार्यक्रमों में शिरकत की। भाजपा अध्यक्ष ने पार्टी संगठन को बूथ स्तर तक और अधिक मजबूत करने पर जोर दिया। साथ ही पार्टी नेताओं को आईना दिखाने से भी वह नहीं चूके। उन्होंने साफ किया कि अगर जनता से लगातार संवाद कायम नहीं किया तो इसका असर विपरीत भी हो सकता है। उन्होंने मंत्रियों, विधायकों, दायित्वधारियों और पार्टी पदाधिकारियों को निरंतर जिलों का दौरा करने, पार्टी के बूथ स्तर तक के कार्यकत्र्ताओं से संवाद और जनता के बीच केंद्र व राज्य सरकार की उपलब्धियां पहुंचाने के निर्देश दिए। इस पर पार्टी ने अमल भी शुरू कर दिया है।

हरदा का 2024 में राहुल को पीएम  बनाने का दांव

उत्तराखंड में कांग्रेस हालांकि अब विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है, लेकिन इसके बावजूद पार्टी का अंतर्कलह गाहे-बगाहे सतह पर दिखता रहता है। गुटबाजी का आलम यह है कि अभी से अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पार्टी में दांवपेच चलने लगे हैं। एक खेमा प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश का है, तो दूसरे खेमे में पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत के समर्थक हैं। साल गुजरते-गुजरते हरीश रावत ने यह कहकर अपनी दावेदारी पेश कर दी कि वह अभी सियासत से संन्यास नहीं लेने जा रहे हैं। साथ ही उन्होंने साफ किया कि वह वर्ष 2024 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के बाद ही सियासत को अलविदा कहेंगे। निहितार्थ साफ, राज्य में वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हें दरकिनार नहीं कर सकती।

भाजपा को मिला एक और सांसद, बंसल गए राज्यसभा

इस साल उत्तराखंड से भाजपा को एक और सांसद मिल गया। दरअसल, उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें हैं, जबकि राज्यसभा की तीन सीटें। हाल तक तीन राज्यसभा सीटों में से दो कांग्रेस के पास थीं। राज बब्बर और प्रदीप टम्टा उत्तराखंड से राज्यसभा में कांग्रेस की नुमाइंदगी कर रहे थे। भाजपा के पास जो एक सीट है, उसका प्रतिनिधित्व पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख व मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी कर रहे हैं। नवंबर में राज बब्बर का कार्यकाल पूरा हो गया तो भाजपा ने इस सीट के लिए वरिष्ठ पार्टी नेता नरेश बंसल को मैदान में उतारा। विधानसभा में संख्याबल भाजपा के पास था, लिहाजा कांग्रेस ने चुनाव न लड़कर बंसल को वाकओवर दे दिया। इससे भाजपा की उत्तराखंड से तीन में से दो सीटें हो गईं। राज्य में लोकसभा की सभी पांच सीटें भी भाजपा के ही पास हैं।

कोरोना इफेक्ट, राज्यपाल व मुख्यमंत्री तक संक्रमित

विश्वव्यापी कोरोना महामारी का उत्तराखंड में भी बड़ा असर नजर आया। यहां तक कि तमाम बड़ी शख्सियत तक इसकी चपेट में आने से नहीं बच सकीं। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल, नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, मदन कौशिक, हरक सिंह रावत, राज्य मंत्री धन सिंह रावत, रेखा आर्य, सांसद अजय भट्ट के अलावा एक दर्जन से ज्यादा विधायक कोरोना पॉजिटिव हुए। राहत की बात यह कि मुख्यमंत्री दिल्ली स्थित एम्स में उपचार करा रहे हैं, जबकि बाकी सभी लोग कोरोना को मात दे चुके हैं।

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