
सावन (Sawan 2025) के महीने में भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए भक्त कई धार्मिक स्थलों और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करते हैं। तीर्थ यात्रा सिर्फ घूमने का नहीं बल्कि आत्मिक साधना और आत्मशुद्धि का मार्ग है। इस दौरान नियमों का पालन करना मन और आत्मा के संपर्क में रहने से आप वह ऊर्जा महसूस कर सकेंगे।
भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन चल रहा है। इस महीने का कोई भी दिन ऐसा नहीं है, जिस दिन व्रत करने का अभीष्ट फल न मिले। स्वयं भगवान शिव सनत्कुमार को बताते हैं कि श्रावण मास में नक्त व्रत अर्थात एक समय भोजन करना चाहिए।
‘रुद्राभिषेकं कुर्वीत मासमात्रं दिने-दिने।’ यानी इस महीने में व्यक्ति को रोजाना रुद्राभिषेक करना चाहिए। जो लोग इन बातों का पालन करते हैं, वो निश्चित रूप से भोलेनाथ की कृपा से सुख-संपत्ति, यश और आरोग्य को प्राप्त करते हैं।
भोलेनाथ का अभिषेक करने और उनके दर्शनों की अभिलाषा से कई लोग धार्मिक नगरियों और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने जाते हैं। अगर इस समय में आप भी किसी धार्मिक नगरी की यात्रा पर जा रहे हैं, तो इस बार इसे घूमने के रूप में नहीं, दिव्य ऊर्जा को प्राप्त करने और उसे महसूस करने के लिए इन बातों को करके देखें।
मर्यादाओं का करें पालन
तीर्थ यात्रा और पर्यटन स्थल में घूमने जाने में अंतर होता है। जब आप कहीं घूमने के लिए जाते हैं, तो सिर्फ वहां की सुंदरता को देखते हैं और उस जगह के मजे लेते हैं। मगर, तीर्थ यात्रा में ऐसा नहीं होता है। यह आत्मिक साधना और आत्मशुद्धि का रास्ता होता है। इसलिए तीर्थ यात्रा में नियमों और मर्यादाओं से चलना चाहिए, तभी कृपा मिलती है।
तीर्थ यात्रा में मन की खुशी वाले काम जैसे वहां जाकर सेल्फी लेना, खरीदारी करना, खाने के लिए बेहतर विकल्प तलाशना नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत यह आत्मा की यात्रा होनी चाहिए, जिसमें नाम जाप और भगवत चेतना होनी चाहिए, तभी आप उस ऊर्जा को महसूस कर सकेंगे।
मन और आत्मा के संपर्क में रहें
तीर्थ यात्रा के दौरान मौन का पालन करना चाहिए। बाहरी दुनिया के संपर्क में आने से बेहतर है अपने मन और आत्मा के संपर्क में रहें। नाम जाप इसमें मदद करता है। इस दौरान सात्त्विक और कम भोजन करना चाहिए। प्याज, लहसुन, मांसाहार आदि नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा खुद को वीआईपी न समझें। इन दिनों शिवालयों में भीड़ हो रही है। ऐसे में लाइन में काफी समय लगने के बाद जब दो पल के लिए भी भगवान के दर्शन हों, तो उस पल को कैमरे में कैद करने में न जुटें। उसे अपने मन में बसा लें।
दर्शन के बाद मंदिर परिसर में उस छवि का ध्यान करें। इसके बाद जब भी आप आंखें बंद करेंगे, वह स्वरूप आपको दिखेगा। उस एक पल में आपकी आत्मा-परमात्मा से मिल सकेगी।