छठ पूजा का चौथा दिन, यानी कार्तिक शुक्ल सप्तमी, इस कठोर 36 घंटे के निर्जला व्रत के समापन का दिन होता है। इस दिन व्रती उगते हुए सूर्य यानी ऊषा अर्घ्य देकर व्रत का पारण करते हैं। पारण केवल व्रत खोलना नहीं है, बल्कि छठी माता और सूर्य देव की पूर्ण कृपा पाने का भी दिन होता है, क्योंकि इसी पर व्रत की सफलता निर्भर करती है।
ऊषा अर्घ्य समय
28 अक्टूबर को सूर्योदय सुबह 06 बजकर 30 मिनट पर होगा।
छठ व्रत पारण विधि
व्रती सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचकर, कमर तक पानी में खड़े होकर, बांस के सूप या टोकरी में रखे प्रसाद और फल के साथ उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
अर्घ्य तांबे के लोटे में जल और दूध मिलाकर दिया जाता है।
अर्घ्य के बाद व्रती छठी मैया को प्रणाम कर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने के लिए धन्यवाद करती हैं।
इसके बाद प्रसाद से भरे सूप को अपने सिर पर रखकर घाट से घर वापस आते हैं।
घर आने के बाद, व्रती सबसे पहले जल या दूध का शरबत पीकर 36 घंटे के निर्जला व्रत के पारण की शुरुआत करते हैं।
इसके बाद छठी मैया को चढ़ाए गए प्रसाद का सेवन करते हैं।
पारण में क्या खाना चाहिए?
व्रत पारण का भोजन हमेशा सात्विक और हल्का होना चाहिए ताकि लंबे उपवास के बाद शरीर को कोई परेशानी न हो।
सबसे पहले छठी मैया को चढ़ाए गए मुख्य प्रसाद जैसे ठेकुआ और कसार लड्डू खाकर व्रत खोलें।
बांस की टोकरी में चढ़ाए गए मौसमी फल का सेवन करें।
व्रत खोलने के बाद व्रती को सात्विक और हल्का भोजन ही करना चाहिए।
इस दिन भी लहसुन, प्याज या किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन पूरे परिवार के लिए वर्जित होता है।
व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही, परिवार के अन्य सदस्य प्रसाद और भोजन का सेवन करें।
अर्घ्य मंत्र
ॐ सूर्याय नमः
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।
ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:। विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।।
