श्रीकाशी विश्वनाथ धाम कॉरीडोर में मौसम की चुभन से मुक्त होंगे श्रद्धालुओं के पांव
बाबा दरबार से ललिता-मणिकर्णिकाघाट तक बन रहा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम कॉरीडोर में मौसम भोले शंकर की आराधना-साधना के आड़े नहीं आएगा। इसमें श्रद्धालुओं के पांव तपन व गलन की चुभन से मुक्त होंगे। फर्श के पत्थर गर्मी में शीतलता तो ठंड में गरमाहट का अहसास कराएंगे। इसके लिए पत्थरों के नीचे ऋतु अनुसार शीतल या उष्ण जलधार बहाई जाएगी। बाबा दरबार से जुड़े इस खास प्रोजेक्ट में हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की तर्ज पर यह तकनीक यहां पर अपनाई जाएगी।
श्रीकाशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र परिषद ने इससे जुड़े सभी पहलुओं पर चिंतन-मंथन के बाद इसे कॉरीडोर की डीपीआर में शामिल कर लिया है। हालांकि बाबा दरबार से गंगा तट तक के दायरे में असल बनारस का आभास कराने के लिहाज से चुनार के गुलाबी पत्थरों का अधिक उपयोग किया जाना है जो गर्मी में तवा की तरह गरम और ठंड में खूब गलन लिए होते हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं को इस बाधा से मुक्त रखने का जतन किया गया।
प्रकृति की गोद का अहसास
वास्तव में लगभग पांच लाख वर्गफीट में कॉरीडोर का निर्माण श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिहाज से किया जा रहा है। उद्देश्य यह कि भक्तों को तपिश-बरसात झेलते या ठंड में ठिठुरते हुए सड़कों पर कतारबद्ध न होना पड़े। इसके लिए श्रद्धालु सुविधा से जुड़े भवनों के निर्माण भी पूरे क्षेत्रफल का महज तीस फीसद ही रखा गया है। शेष क्षेत्र रुद्र वन की छटा समेटे खुला रहेगा। इससे एक ओर हिमालयवासी भोले बाबा का दरबार, दूसरी ओर गंगधार और बीच में प्राकृतिक छटा लिए कारिडोर प्रकृति की गोद में आ जाने का अहसास देगा। इसमें दो लाख से अधिक श्रद्धालु एक साथ कतारबद्ध होंगे। यहां उनके बैठने या जप-तप और साधना के लिए भी स्थान होगा।
दिखेगा असल बनारस
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर व विशिष्ट क्षेत्र परिषद के सीईओ विशाल सिंह के अनुसार काशी का एक नाम आनंद कानन भी रहा है। कॉरीडोर में इसे अपनाया गया है ताकि लोग काशी के मूल स्वरूप को देखें और बनारस का अहसास पा सकें। श्रद्धालु किसी बाधा से मुक्त हो बाबा का ध्यान कर सकें, इसका ध्यान रखते हुए ही ताप -शीत के असर से मुक्त फर्श की कल्पना की गई। असल बनारस दिखाने के लिहाज से आध्यात्मिक पुस्तक केंद्र, वैदिक केंद्र सिटी म्यूजियम, वाराणसी गैलरी, मल्टी परपज हाल, सांस्कृतिक केंद्र भी होगा।