ना कहना भी है एक कला, जानें कैसे सीखा जाए इसे
कई बार ना कहने से अनचाहे तनाव और दवाब से बचा जा सकता है, जबकि हर काम के लिए हां कह देने से मुश्किलें खडी हो जाती है। इंकार कई बार दुविधा और अपराध बोध में भी डाल देता है, इसलिए ना कहने की कला सीखने की जरूरत है। कैसे कहे ना…..आइए जानते है।
खुद पर विश्वास करना
अक्सर हम दोस्ती रिश्तेदारी, आत्मविश्वास की कमी या दुविधा के कारण दूसरों की बातें मान लेते हैं। जैसे ‘‘पार्टी में दोस्तों के कहने पर मैनें भी एक पैग ले लिया। ऑफिस के लोग बाहर खाना खाने जा रहे थे, तो मैं भी चली गई, अब बजट गडबड हो गया।” इन सब परिस्थितियों में दूसरों की बात मानीं, अगर चाहते तो, शालीनता से मना भी कर सकते थे। ना कहने का मतलब है अपने लिए खडे होना। कुछ बातों में ना करके आप अनचाही परिस्थितियों में फंसने से बचते हैं, इससे आत्मविश्वास बढता है
ऊर्जा को बचाए रखें
कई बार हम दूसरों को खुश करने की लिए उनकी बात के लिए हामी भर देते है और बाद में सोचते हैं कि ना कह देते तो ज्यादा अच्छा होता। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम ना को नकारात्मक भाव से जोडते है। ऐसा करने से हम अपना समय खुद ही बर्बाद करते हैं। अपने समय,निजता और ऊर्जा को बचाने का आसान और सीधा तरीका है ना कहना।
किस बात का रखें ध्यान
ना को किस जगह कैसे फिट करना है, यह आप पर निर्भर करता है। जैसे पढ़ाई करते समय फेसबुक या व्हाट्सएप पर से ध्यान हटाना, भोजन को मन से खाने के लिए फोन को दूर रखना, वजन कम करना है, तो चीनी को ना कहना आदि।
मतलब को समझें
कभी कभी कुछ बातें कहीं किसी ओर अर्थ में जाती है और सामने वाला उसे किसी ओर संदर्भ में ले जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें अपनी बात को सही ढंग से समझाना नहीं आता। अगर हमारे पास सीमित समय है तो किसी को हां कह देने से ही उसका काम समय पर नहीं कर पाएंगें, यानी परिणाम तक पहुंचते पहुंचते वह काम ना में ही बदल जाएगा, क्योंकि समय की कमी उसे पूरा नहीं होने देगी। ऐसे में पहले ही ना कह देना ज्यादा अच्छा होता है।