उत्तराखंड पर मंडरा रहा है खतरा, फिर से हो सकता हैं बड़ा हादसा…
उत्तराखंड का चमोली जिला अभी हादसे से उबरा भी नहीं है. उसके ऊपर एक और खतरा मंडरा रहा है. पिछले हादसे की वजह त्रिशूल पर्वत के पास भूस्खलन से ग्लेशियर टूटने और झील से तेज बहाव था. जिसने ऋषिगंगा में सैलाब ला दिया था. लेकिन अब ऋषिगंगा के ऊपरी हिस्से यानी अपस्ट्रीम पर एक और अस्थाई झील बनती दिखाई पड़ी है. अगर यह टूटी तो फिर से बड़ा हादसा हो सकता है.
इस बात की पुष्टि देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने की है. इस संस्थान के साइंटिस्ट्स ने हेलिकॉप्टर से ऋषिगंगा के ऊपरी इलाकों का सर्वे किया. इसके बाद उन्हें वहां पर एक नई झील बनती हुई दिखाई दे रही है. वाडिया इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट्स के मुताबिक इस झील का आकार 10 से 20 मीटर है.
ज्यादा ऊंचाई से सर्वे करने की वजह से झील का सही आकार पता नहीं चल पाया लेकिन अगर यह झील आकार में बढ़ती रही और बाद में टूटी तो बड़ा हादसा हो सकता है. इसलिए इसे पहले ही तोड़कर इसका पानी हटाना होगा. वाडिया संस्थान के साइंटिस्ट ये मानते हैं कि संभवतः हैंगिंग ग्लेशियर टूटने के बाद जो मलबा नीचे आया है, उसकी वजह से ये झील बनी हो.
एरियल तस्वीरों के मुताबिक अभी झील में ज्यादा पानी जमा नहीं हुआ है. इसलिए डरने की जरूरत नहीं है. लेकिन भविष्य में ये खतरा बने उससे पहले इसका कुछ इलाज करना जरूरी है. यह झील ऋषिगंगा प्रोजेक्ट से 6 किलोमीटर ऊपर की तरफ बनी है. यह झील रैणी गांव से भी ऊपर है. इसकी जानकारी केंद्र और राज्य सरकार को दे दी गई है.
जहां ग्लेशियर टूटा है उसे रोंटी पीक कहते हैं. ग्लेशियर टूटकर जब नीचे आया तो उसके साथ मलबा आया. यह मलबा रोंटी स्ट्रीम और ऋषिगंगा के मिलन स्थान पर जमा हो गया है. इसकी वजह से वहां अस्थाई बांध बन गया. इसके बाद जो पानी वहां जमा हो रहा है वह एक झील का रूप ले रहा है.
वाडिया इंस्टीट्यूट के मुताबिक झील के पानी का रंग अभी नीला ही दिख रहा है इसलिए हो सकता है कि यह पुरानी झील हो लेकिन इसकी धार की तरफ बना अस्थाई बांध टूटा तो फिर से एक सैलाब आ सकता है. फिलहाल ऋषिगंगा के पानी का फ्लो नीचे की तरफ नहीं जा रहा है. वह रुका हुआ है. अभी तक इस झील में कितना पानी जमा है ये पता नहीं चल पाया है.
आपको बता दें कि गुरुवार को ऋषिगंगा का जलस्तर बढ़ने की वजह से तपोवन पावर प्रोजेक्ट के पास चल रहे राहत एवं बचाव कार्य को रोकना पड़ा था. वाडिया इंस्टीट्यूट ने नई झील की जानकारी और बहाव रुकने की जानकारी स्थानीय प्रशासन और ITBP को भी दी है. अब इस खुलासे के बाद NDRF की एक टीम को उस जगह भेजने की तैयारी की जा रही है, जहां नई झील का निर्माण हुआ है, ताकि अधिक जानकारी जमा की जा सके.