बड़ी अद्भुत है सत्संग की महिमा:—

सुन्दर काण्ड का बहुत ही सुन्दर प्रसंग है,जब हनुमानजी लंका में प्रवेश कर रहे है,हनुमानजी ने तो पूरी लंका में ही सत्संग के द्वारा प्रभाव डाला था,पर हनुमानजी के सत्संग का प्रभाव दो ब्यक्तियों पर बड़ा गहरा पड़ा।एक तो लंकिनी पर और दूसरे विभीषण पर। लंकिनी पर तो उनके सत्संग का विशिष्ट प्रभाव पड़ा,हनुमानजी ने सोचा कि छोटे बनकर लंका में घुसें पर रावण का सुरक्षा तंत्र इतना सुदृढ़ था,कि ज्यों ही घुसने लगे,लंकिनी ने हनुमानजी को पकड़ लिया।


हनुमान जी ने लंकिनी से पूछा:–
कि क्या लंका में सब भूखे ही भूखे रहते हैं?जो मिलता है,वही खाने के लिए कहता है?
सबको भूख लगी है क्या?

लंकिनी ने कहा:–
देख नहीं रहा है!लंका में इतना सोना है,इतना वैभव है,इतने भोज्यपदार्थ हैं, लंका में भूखा कौन है?

हनुमानजी ने कहा:–
यदि लंका में कोई भूखा नहीं है,तो तुम मुझे खाना क्यों चाहती हो?

तुरन्त लंकिनी ने कहा:–
मोर अहार जहाँ लगि चोरा।

मैंने चोरी मिटाने का व्रत लिया है,इसलिए मैं चोरों को खा जाती हूँ,तुझे खाने का कारण चोरों को मिटाना ही है,भूख नहीं बस ज्यों ही हनुमान जी ने सुना,तुरन्त उठकर खड़े हुए,और कसकर एक मुक्का लगाया,लंकिनी मुँह के बल गिरी और मुँह से रक्त गिरने लगा,उसके बाद हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी।

लंकिनी कहने लगी:–
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिय तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।

आपके सत्संग से मैं धन्य हो गयी, हनुमानजी ने कोई भाषण तो दिया नहीं,लंकिनी के सामने,केवल एक मुक्का कस के मारा और वह कहने लगी बढ़िया सत्संग हुआ
पर यदि हम बिचार करे, तो सत्संग मुक्केबाजी ही है,पर अगर उसकी सही चोट लगे तो,यह बात और है कि मुक्के बरसते रहते हैं और मुक्के बरसने के बाद भी कभी संसार के राग रूपी रक्त नहीं बहता,कभी मुँह के बल नहीं गिरते,आगे रावण को भी हनुमान जी ने मुक्का मारा,और जब मुक्का लगा तो रावण भी थोड़ी देर के लिए अचेत हो गया,और उठा तो कहा – बंदर! तेरे मुक्के में बड़ी शक्ति है. हनुमानजी ने तो सिर पीट लिया।
रावण ने कहा – मैं तुम्हारी प्रशंसा कर रहा हूँ और तुम सिर पीट रहे हो?

हनुमान जी ने कहा:–
धिग धिग मम पौरुष धिग मोही।जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही।।

जब तुम नहीं मरे,तो प्रशंसा कैसी? प्रशंसा तो तब है जब सत्संग के प्रहार से मोह मर जाए, तब तो मुक्के का ठीक प्रभाव है,पर सत्संग का प्रहार होने के बाद भी मोह ज्यों का त्यों बना रहे,तो सत्संग का प्रभाव ही क्या रहा,मुक्के का प्रभाव लंकिनी पर ठीक पड़ा हनुमानजी को लंकिनी चोर क्यों कह रही थी? वह मानती थी कि लंका का स्वामी रावण है और इस नगर में रात्रि के समय जो छोटा सा बनकर घुसना चाहता है,वह चोर है,हनुमानजी ने मुक्का मारकर गिरा दिया।
हनुमान जी ने कहा- पहले चोर और साहूकार की परिभाषा तो समझ ले. अगर तेरा ब्रत यही था कि जो चोर है,उसी को खाऊँगी,तो सबसे पहले रावण को खाती,जो सीताजी को चुरा कर लाया है।मैं तो चोरी का पता लगाने आया हूँ।
चोर तो रावण है,और जो चोर है,उसको तू स्वामी समझ बैठी है.और मुझे समझ बैठी कि मैं चोर हूँ.तेरा तो मस्तिष्क ही उल्टा है,इसलिए तुझे मुक्के की आवश्यकता है,ताकि तेरा दिमाग ठिकाने आ जाय और हुआ भी यही।

लंकिनी तुरंत हनुमानजी से कहने लगी:–
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।हृदय राखि कोसल पुर राजा।।

लंकिनी ने कहा:— महाराज!मैं भूल से समझती थी कि मैं रावण की चेरी हूँ,और लंका का स्वामी रावण है,पर आपके प्रहार से ऐसा लगने लगा कि सच्चा स्वामी तो ईश्वर है. ऐसी परिस्थिति में तुम ईश्वर का काम करने जा रहे हो,तो ईश्वर को हृदय में रखकर प्रवेश करो,और दूसरी भ्रान्ति विभीषण के मन में भी थी,इनका भी सत्संग के माध्यम से भ्रम दूर होता है।

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