जानिए आखिर क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा, प्रभु श्रीराम से सम्बंधित है कथा

आज पुरे देश में गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जा रहा है, चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहा जाता हैं। इस दिन से हिन्दू नववर्ष कि शुरुआत होती है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी आरम्भ होता है। अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी बोलते हैं। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि कि भी शुरुआत होती है। आज का दिन सभी प्रत्येक भारतीय के लिए बेहद अहम होता है, आज सभी पूजा करने के साथ इस पर्व को उल्लास के साथ मनाते है। 

वही चैत्र ही एक ऐसा माह है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का पहला दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों तथा वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को नववर्ष माना जाता है। वही कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन प्रभु श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में जश्न मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए। 

साथ ही आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की मान्यता महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया। महाराष्ट्र में इस दिन पूरन पोली अथवा मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं-गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली तथा कच्चा आम होता है। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए तथा इमली व सामान्य जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है।

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