जीवन में पाना चाहते है सफलता तो वाणी में कभी न आने दें मधुरता की कमी
चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि स्वभाव और आचरण ही व्यक्ति की सफलता में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है. जो व्यक्ति दूसरों के प्रति संवेदनशील रहता है, वह सभी का प्रिय और अनुकरणीय होता है. इसलिए व्यक्ति को अपने आचरण को लेकर अत्यंत गंभीर रहना चाहिए.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को श्रेष्ठ आचरण के बारे में बताते हैं. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपने श्रेष्ठ आचरण का त्याग नहीं करना चाहिए. विद्वानों की मानें तो आचरण की शोभा ज्ञान, संस्कार और मधुर वाणी से उत्पन्न होते हैं.
मधुर वाणी सभी को प्रिय लगती है. कभी-कभी मुख से निकला शब्द जहर से बुझे तीर से भी अधिक घातक होता है. वाणी की सुंदर अच्छे शब्द हैं. कई बार वार्ता के दौरान व्यक्ति शब्दों के चयन पर ध्यान नहीं देता है और अपयश का भी पात्र बनता है.
मधुर वाणी सभी को अपना बनाती है
चाणक्य की मानें तो मधुर वाणी बोलने वाले सभी के प्रिय होते हैं. वाणी व्यक्ति के चरित्र का दर्पण होती है. ज्ञान और संस्कार की झलक व्यक्ति की वाणी से ही ज्ञात होती है. मधुर वाणी सभी को अपना बना लेती है. जिस प्रकार से कोयल की बोली कानों में रस घोलती है, ठीक उसी प्रकार से मधुर वाणी व्यक्ति को आकर्षित और प्रभावित करती है.
ऐसी वाणी न बोलें जो दूसरों की पीड़ा दे
वाणी में मधुरता और स्वभाव में विनम्रता दो ऐसे गुण हैं जो व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाते है. कभी ऐसी वाणी नहीं बोलनी चाहिए, जिससे सामने वालों को कष्ट पहुंचे. वाणी की मधुरता किसी भी स्थिति में नहीं खोनी चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करने में सफल रहते हैं, उन्हें जीवन में कभी परेशानी नहीं उठानी पड़ती है. बुरे दौर में भी ऐसे लोगों के पास शुभचिंतकों की कोई कमी नहीं रहती है.