प्रदूषण के लिए बायोमास बर्निंग निर्माण कार्य इंडस्ट्री व दिवाली के पटाखों को माना जाता है जिम्मेदार
प्रदूषण की समस्या से देश भर में लोग परेशान है। मेट्रो शहरों में दिवाली के दौरान और सर्दियों में प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर हो जाती है। जिसकी वजह से लोगों को स्वास्थ्य से जुड़ी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्रदूषण के लिए कई चीजों को उत्तरदाई माना जाता है। जिसमें बायोमास बर्निंग, निर्माण कार्य, इंडस्ट्री आदि प्रमुख कारक माने जाते हैं। दिवाली के दौरान पटाखों को भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माना जाता है। पर हाल ही में मेट्रो शहरों में किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि दिवाली के दौरान होने वाले प्रदूषण के लिए पटाखे मुख्य कारक नहीं है बल्कि दिल्ली का मौसम इसके लिए अहम कारण है।
आभ्रा चंदा (पुरष कानपुर हरिदास नंदी महाविद्यालय), जयत्रा मंडल (स्कूल ऑफ ओशियानोग्राफिक स्टडीज, जाधवपुर यूनिवर्सिटी) और सौरव सामंत ने ‘एयर पॉल्यूशन इन थ्री मेगासिटीज ऑफ इंडिया ड्यूरिंग द दिवाली फेस्टिवल एमिस्ट कोविड-19 पेंडेमिक’ नाम से एक स्टडी रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में दिवाली के दौरान दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में सात प्रदूषकों (पीएम 2.5, पीएम 10, NO2, NH3, SO2, CO और O3) का अध्ययन किया गया। स्टडी में 2019 में कोरोना आपदा के पहले की दिवाली और 2020 में कोरोना आपदा के बाद की दिवाली का अध्ययन किया गया।
रिपोर्ट में आया ये सामने
तीन मेगाशहरों के मुकाबले दिल्ली में दिवाली के पहले और दिवाली के बाद सबसे अधिक प्रदूषण था। मुंबई और कोलकाता में 2020 में दिवाली के दौरान प्रदूषकों के स्तर में ज्यादा ईजाफा नहीं हुआ था। दिल्ली में मौसम की खराब परिस्थितियों ने वायु प्रदूषण की स्थिति को और खराब कर दिया था। पीएम 2.5, पीएम 10, NO2, NH3, SO2, CO और O3 का कंसंट्रेशन दिल्ली में 2019 की दिवाली के मुकाबले 2020 में अधिक था। रिपोर्ट में सबसे प्रमुख बात देखने में यह आई कि 2019 के मुकाबले 2020 में प्रदूषक तत्वों के स्तर में अधिक उछाल आया था।
डा. आभ्रा चंदा ने कहा कि कोरोना आपदा के साल और 2019 में दिवाली के दौरान प्रदूषण के आंकड़ों में बड़ा फर्क नहीं देखने को मिला। वहीं आंकड़े इस बात को प्रमाणित करता हैं कि दिवाली जितनी देर से होती है उतना ही प्रदूषण बढ़ने की संभावना होती है क्योंकि बाद में दिवाली होने पर सर्दियां आ जाती है।
ऐसा रहा प्रदूषकों का स्तर
अध्ययन के अनुसार 2019 और 2020 में पीएम 2.5 का स्तर मुंबई को छोड़कर दोनों शहरों में अधिक था। ट्रोपोस्फरिक O3 का स्तर भी कोलकाता की 2020 की दिवाली को छोड़कर अन्य शहरों में कम था। वहीं NO2 का स्तर भी दिवाली को छोड़कर शेष समय निर्धारित लिमिट के अंदर था।
मौसम ने बिगाड़ा दिल्ली का प्रदूषण स्तर
डा. आभ्रा चंदा के अनुसार मौसम की वजह से 2019 और 2020 के दौरान दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अधिक बिगड़ गया। मुंबई और कोलकाता में मौसम की अनुकूलता ने प्रदूषण के स्तर को अधिक खराब नहीं होने दिया। 2019 और 2020 की दिवाली के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5, पीएम 10 और CO के स्तर में काफी बढ़ोतरी हुई जबकि कोलकाता में O3 के स्तर में सबसे अधिक उछाल हुआ। कोलकाता में O3 का बढ़ना इस बात को दर्शाता है कि कोलकाता में बड़ी तादाद में पटाखे छोड़े गए। 2019 के मुकाबले 2020 में दिल्ली में CO के स्तर में निर्धारित सीमा के मुकाबले 47 फीसद, मुंबई में 39 फीसद और कोलकाता में 20 फीसद का ईजाफा हुआ।
रिपोर्ट में न्यूनतम और अधिकतम तापमान, ह्यूमिडिटी, हवा की गति और कुल वर्षा का तीनों शहर में विश्लेषण किया गया। दिवाली के दोनों सालों में मुंबई और कोलकाता के मीन एयर टेंपरेचर में अधिक फर्क नहीं दिखाई दिया। वहीं दिल्ली में 2019 के मुकाबले 2020 में तापमान कम था।
दिवाली के बाद शहरों में ऐसा बदला प्रदूषकों का स्तर
मुंबई और कोलकाता में दिवाली के सात दिन बाद प्रदूषण का स्तर दिवाली के पहले वाली स्थिति में आ गया। वहीं दिल्ली में इसके उलट स्थिति देखने को मिली। दिल्ली में दिवाली के सात दिन बाद भी प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कई अध्ययन बताते हैं कि पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली में सबसे अधिक परेशान का कारण बनता है लेकिन 2020 में इसके विपरीत स्थिति देखने को मिली। दिवाली के बाद मुंबई और कोलकाता में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ा तो दिल्ली में इसके स्तर में कमी आई। दिल्ली में 2019 और 2020 की दिवाली में इसके बनिस्बत पीएम 10 के स्तर में बढ़ोतरी हुई।
पर्टिकुलेट मैटर
पर्टिकुलेट मैटर या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकारों के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकता है. स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। प्रदूषण का सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकता है। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं। इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि और स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पढ़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।