गांव की माटी के आगे फीकी लगती है विदेश की चकाचौंध

  • आस्ट्रेलिया व हावर्ड का शानदार कॅरिअर छोड़ सफीपुर को बनाया अपना ठिकाना
  • सफीपुर के बच्चों के साथ स्वरित ने धूमधाम से मनाया बाल दिवस
  • सफीपुर के बच्चों को अपने स्वरित भैया से बतियाना बहुत अच्छा लगता है


उन्नाव। मोहान से कानपुर के रास्ते में जब आप गुजरेंगे तो सफीपुर तो स्वरित के समाजकार्य आपको चौंका देंगे। बिना किसी स्वार्थ के सालों से सफीपुर के लोगों के दिलों में राज करने वाले स्वरित, कोरोना काल में दूर दराज गांवों तक स्वयं सहायता लेकर पहुंचने वाले स्वरित तो बच्चों में भैया के रूप में प्रसिद्ध स्वरित सफीपुर हर किसी के सुख दुख शामिल होने वाले पहले व्यक्ति होते हैं। बाल दिवस पर बच्चों के बीच बच्चे बन स्वरित ने बच्चों के साथ न सिर्फ अपना बचपन जिया बल्कि बच्चों ने अपने भैया को पाकर ढेरो फरमाइशें की और प्यार के साथ सभी बच्चों ने उपहार पाये। आइये जानते हैं कि ये स्वरित चौधरी हैं कौन।

स्वरित चौधरी 33 साल का वो नौजवान जिसे प्यार है अपने माटी से अपने गांव से, अपने लोगो से। सफीपुर की माटी से जुड़े स्वरित का बचपन कानपुर जैसे महानगर में बीता शुरूआती पढ़ाई लिखाई कानपुर में हुई फिर सपनों को पंख लगे तो कुछ नया करने की चाह ने पहले पुणे और फिर आस्ट्रेलिया और इसके बाद हावर्ड का सफर तय करवाया। ऊंचाइयां छूने के बाद भी स्वरित अपनी धरती अपनी जमीन को नहीं भूले। स्वरित के बारे में स्वरित से ज्यादा कुछ जानना हो तो लखनऊ और कानपुर के बीच बसे उन्नाव तक आइये। यहां आम के लिए मलिहाबाद के बाद सबसे प्रसिद्ध सफीपुर आपका खुद ही स्वरित से परिचय करायेगा। बच्चे बुजुर्ग युवा जो भी वहां के रहने वाले आपको मिलेंगे और स्वरित की बातें होंगी। जाति धर्म व दलीय दायरे को तोड़ स्वरित सबके साथ सुख हो यो दुख, खड़े मिलते हैं। स्वरित के साथ सफीपुर भैया, बेटा जैसे शब्द स्वयं जोड़ लेता है। सफीपुर ही नहीं निजी जीवन में स्वरित का सेवाभाव व मददगार स्वभाव उन्हें खास बनाता है। उनका परिचय विदेश में शिक्षा भर ही नहीं बल्कि शिक्षा को सभी समस्याओं के समाधान का साधन बनाना भी है। आस्ट्रेलिया व हावर्ड व पुणे से पढ़कर लौटे स्वरित को उन्नाव में अपने पुरखों का सफीपुर इतना भा गया है कि वो यहीं के हो कर रह गये हैं। आपको ये भी बताते चलें कि आस्ट्रेलिया में उसी यूनिवर्सिटी में स्वरित ने अपनी पढ़ाई पूरी की जहां से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पढ़े थे। अपनी माटी से प्यार होने की वजह से बीते कई सालों से सफीपुर को संवार रहे हैं। सफीपुर और स्वरित अब एक दूसरे के पूरक हो गए हैं।

स्वरित की शिक्षा ही उनकी पहचान है। बच्चों से स्वरित को बहुत लगाव है। सफीपुर के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की पढ़ाई में हर संभव मदद करते हैं। बच्चों के लिए अपने स्वयं के प्रयासों खेल प्रतियोगिता भी आयोजित करवाते हैं।
दिवाकर समाज से ताल्लुक रखने वाले 35 साल के नौजवान स्वरित की पढाई पर नजर डाले तो आप स्वयं समझ जायेेंगे कि राजनीति में स्वरित जैसे लोग ही आकर इसे समाज सेवा का असली प्लेटफार्म बना सकते हैं। आस्ट्रेलिया में सिडनी से पब्लिक रिलेशन और सिडनी की ही यूनिवर्सिटी आफ टेक्नालॉजी से एमबीए पूरा किया है। इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी आफ सिडनी से इलेक्ट्रोरल मैनेजमेंट का कोर्स भी किया है।

स्वरित अब ला ग्रेजुएट भी हो गये हैं। अब स्वयं गांव वालों की कानूनी रूप से भी मदद कर सकते हैं।
और अमेरिका के हावर्ड बिजनेस स्कूल से लीडरशिप की पढ़ाई पूरी की है। इसके अलावा देश प्रतिष्ठित बिजनेस मैनेजमेंट स्कूल सिम्बोयोसिस से भी एमबीए की पढ़ाई की है। स्वरित की शुरूआती पढाई कानपुर में हुई है। स्वरित बताते हैं कि उन्हें संत गाडगे बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर डा राममनोहर लोहिया के जीवन से प्रेरणा मिलती रही है। वे इनसे जुड़ा साहित्य बड़े चाव से पढ़ते हैं।

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