शिवसेना ने एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस कसा तंज

मुंबई: शिवसेना ने एक बार फिर से अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कांग्रेस से लेकर BJP तक पर तंज कसा है। सामना में लिखा गया है, ‘कांग्रेस का दुर्भाग्य ऐसा है कि जिन्होंने जिंदगी भर कांग्रेस से सुख-चैन-सत्ता प्राप्त की वही लोग कांग्रेस का गला दबा रहे हैं। गुलाम नबी आजाद ने साल 2024 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं होगी, ऐसा श्राप दिया है। आजाद ने ऐसा कहा है कि आज की स्थिति कायम रही तो कांग्रेस की अवस्था निराशाजनक रहेगी। आजाद वगैरह मंडली ने ‘जी23’ नामक असंतुष्टों का एक गुट तैयार किया है। उस गुट के लगभग सभी लोगों ने कांग्रेस से सत्ता सुख भोगा है लेकिन इस गुट के तेजस्वी मंडल ने कांग्रेस की आज की स्थिति सुधारने के लिए क्या किया? या इस तेजस्वी मंडली को भी अंदर से लगता है कि 2024 में कांग्रेस का काम निराशाजनक रहे, जो भाजपा को लगता है वही इस मंडली को लगता है, इसे एक संयोग ही कहा जाएगा।’

इसी के साथ यह भी लिखा गया है, ‘कांग्रेस ने जब तक लोकसभा में 100 का आंकड़ा पार नहीं किया तो राष्ट्रीय स्तर पर ‘गेम चेंज’ नहीं होगा। इसलिए भाजपा की रणनीति कांग्रेस को रोकनी है, लेकिन यही रणनीति मोदी और भाजपा के विरुद्ध मशाल जलानेवालों ने भी रखी तो वैसे होगा? देश में कांग्रेस की नेतृत्व वाली ‘यूपीए’ कहां है? यह सवाल मुंबई में आकर ममता बनर्जी ने पूछा। यह प्रश्न मौजूदा स्थिति में अनमोल है। यूपीए अस्तित्व में नहीं है, उसी तरह एनडीए भी नहीं है। मोदी की पार्टी को आज एनडीए की आवश्यकता नहीं। लेकिन विपक्षियों को यूपीए की जरूरत है। यूपीए के समानांतर दूसरा गठबंधन बनाना यह भाजपा के हाथ मजबूत करने जैसा है। यूपीए का नेतृत्व कौन करे? यह सवाल है। कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन किस-किस को स्वीकार नहीं है, वे खुलेआम हाथ ऊपर करें, स्पष्ट बोलें। पर्दे के पीछे गुटर-गूं न करें। इससे विवाद और संदेह बढ़ता है।’

वहीं आगे लेख में यह भी लिखा गया है- ‘इसी तरह यूपीए का आप क्या करेंगे? यह एक बार तो सोनिया गांधी या राहुल गांधी को सामने आकर कहना चाहिए। यूपीए का नेतृत्व कौन करे, यह मौजूदा समय का मुद्दा है। यूपीए नहीं होगा तो दूसरा क्या? इस बहस में समय गंवाया जा रहा है, जिसे विपक्ष का मजबूत गठबंधन चाहिए, उन्हें खुद पहल करके ‘यूपीए’ की मजबूती के लिए प्रयास करना चाहिए, एनडीए या यूपीए गठबंधन कई पार्टियों के एक साथ आने पर उभरे। वर्तमान में जिन्हें दिल्ली की राजनीतिक व्यवस्था सही में नहीं चाहिए उनका यूपीए का सशक्तीकरण ही लक्ष्य होना चाहिए। कांग्रेस से जिनका मतभेद है, वह रखकर भी यूपीए की गाड़ी आगे बढ़ाई जा सकती है। अनेक राज्यों में आज भी कांग्रेस है। गोवा, पूर्वोत्तर राज्यों में तृणमूल ने कांग्रेस को तोड़ा लेकिन इससे केवल तृणमूल का दो-चार सांसदों का बल बढ़ा। ‘आप’ का भी वही है। कांग्रेस को दबाना और खुद ऊपर चढ़ना यही मौजूदा विपक्षियों की राजनीतिक चाणक्य नीति है।’

Related Articles

Back to top button