क्या वर्ष 2030 तक भारत अपने लक्ष्य को कर सकेगा हासिल, पढ़े पूरी खबर
National Safe Motherhood Day 2022: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल में कहा था कि भारत में मातृ मृत्यु अनुपात एमएमआर में दस अंक की गिरावट आई है। केंद्र सरकार को उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक प्रति लाख एमएमआर के एसडीजी लक्ष्य को हासिल करने की ओर अग्रसर है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी मातृ मृत्यु अनुपात पर एक विशेष बुलेटिन का हवाला देते हुए मंत्रालय ने कहा कि देश में एमएमआर में लगातार कमी देखी जा रही है। रजिस्ट्रार जनरल को यह बुलेटिन भारत के लिए एक राहत देने वाला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मातृ मृत्यु दर को कम करने के भारत के प्रयासों की सराहना कर चुका है। हालांकि, इस दिशा में अभी भी एक और बड़ी पहल की जरूरत है। विकसित मुल्कों की तुलना में हम अभी बहुत पीछे हैं। खासकर भारत को उच्च एमएमआर वाले राज्यों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या भारत अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगा? क्या भारत की योजनाएं इस दिशा में सही काम कर रही है। आइए जानते हैं इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
2030 तक लक्ष्य प्राप्त करने पर जोर
मंत्रालय ने कहा कि देश में एमएमआर में लगातार कमी देखी जा रही है। वर्ष 2014-2016 में एमएमआर 130 प्रति लाख थी, 2015-17 में 122 प्रति लाख जबकि 2016-18 में एमएमआर 113 प्रति लाख हो गई। वहीं 2017-19 में एमएमआर 103 प्रति लाख थी। इस लगातार गिरावट के साथ, मंत्रालय ने कहा था कि भारत 2020 तक 100 प्रति लाख जीवित जन्मों के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) के लक्ष्य को प्राप्त करने के कगार पर है और 2030 तक निश्चित रूप से 70 प्रति लाख एमएमआर के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। बता दें कि मातृ मृत्यु अनुपात एक निश्चित समय अवधि के दौरान प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर मातृ मृत्यु की संख्या है।
सरकारी योजनाओं से जगी उम्मीद
- पिछले एक दशक में किए गए सुधारों की वजह से एमएमआर में लगातार कमी आई है। यानी बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु दर कम हुई है। इसके अंतर्गत देश के सबसे पिछड़े तथा सीमान्त क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुंच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
- इसके अंतर्गत लक्ष्य, पोषण अभियान, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा हाल ही में लांच सुरक्षित मातृत्व आश्वासन इनिशिएटिव योजना आदि शामिल है।
- दरअसल, किसी भी मुल्क के लिए मातृ मृत्यु दर उस क्षेत्र में महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक पैमाना है। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार जनरल की ताजा बुलेटिन के आंकड़े एक सकारात्मक संकेत दे रहे हैं। भारत में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर किसी भी देश की सेहत की ओर इशारा करती है। यह मृत्यु दर जितनी कम होगी देश उतना अधिक सेहतमंद कहलाएगा।
- भारत सरकार ने 1800 संगठनों के गठबंधन व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (डब्ल्यूआरएआइ) के अनुरोध पर साल 2003 में कस्तूरबा गांधी की जन्म वर्षगांठ 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में घोषित किया था। आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस घोषित करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। इस दिन देशभर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ताकि गर्भवती महिलाओं के पोषण पर सही ध्यान दिया जा सके।
क्या है विशेषज्ञ की राय
1- डा दीपा, एमडी (यशोदा सुपरस्पेशलिटी हास्पिटल में प्रसूति विज्ञानी एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ) इस दिशा में सकारात्मक सोच रखती हैं। उनका कहना है कि यह लक्ष्य कठिन जरूर है पर संभव है। मोदी सरकार जिस संकल्प से काम कर रही है, उससे वह दिन दूर नहीं जब हम अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल होंगे। उनका मानना है कि मोदी सरकार के आने के बाद वर्ष 2016 के बाद इस दिशा में विशेष कदम उठाए गए। 2016 में शुरू किया गया प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) के बाद वर्ष 2017 में लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव शुरू की गई। इसका मकसद लेबर रूम में मैटरनिटी आपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इसके जरिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान और तत्काल बाद की अवधि में सम्मानजनक और गुणवत्तायुक्त देखभाल उपलब्ध है।
2- डा दीपा ने कहा कि भारत सरकार ने समयबद्ध तरीके से बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण स्थिति में सुधार लाने के लक्ष्य को हासिल करने के साथ 2018 से पोषण अभियान लागू किया है। यह इस दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। वर्ष 2018 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनीमिया मुक्त भारत रणनीति की शुरूआत की थी, जिसका मकसद जीवन चक्र पहुंच में पोषण और गैर-पोषण कारणों से एनीमिया के प्रसार को कम करना है। इस रणनीति का 30 लाख गर्भवती महिलाओं सहित 45 करोड़ लाभार्थियों तक पहुंचने का अनुमान है।
3- उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) एक प्रभावी कदम रहा। इसका मकसद बिना किसी लागत के सुनिश्चित, सम्मानजनक, गरिमामयी और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई), एक मांग प्रोत्साहन और सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है जिसे अप्रैल 2005 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं के संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करना है। जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) का मकसद गर्भवती महिलाओं और बीमार शिशुओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में सिजेरियन सेक्शन, मुफ्त परिवहन, निदान, दवाएं, अन्य उपभोग्य वस्तुएं, आहार और रक्त सहित सेवाओं की मुफ्त आपूर्ति करके उनके जेब पर पड़ने वाले खर्च को समाप्त करना है।