पति की लंबी उम्र व सुख-समृद्धि की कामना के ल‍िए मह‍िलाओं ने की वटवृक्ष की पूजा

 ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सोमवार को वट सावित्री व्रत परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया गया। महिलाओं ने व्रत रहकर वट वृक्ष की पूजा की। पति की लंबी उम्र व सुख-समृद्धि की कामना की। वट वृक्षों के नीचे सुबह से लेकर दोपहर तक पूजन-अर्चन चलता रहा। मंगलगीत गूंजते रहे।

सावित्री-सत्यवान का प्रतीक बनाकर की पूजा अर्चना

सुबह स्नान कर महिलाओं ने व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद अपने आसपास के वट वृक्षों के नीचे जाकर पूजा-अर्चना की। ब्रह्मा-सावित्री व सावित्री-सत्यवान का प्रतीक बनाकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर मंगल कामना की। पूजन में समस्त सुहाग सामग्रियां शामिल थीं।

सूत लपेटते हुए परिक्रमा की वट वृक्ष की पूजा

वट वृक्ष की जड़ को जल से सींचा। वट वृक्ष की परिक्रमा की। इस दौरान वे सूत से वट वृक्ष के तने को लपेटती जा रही थीं। कुछ महिलाओं ने तने में 108 बार तो कुछ ने सिर्फ सात बार सूत लपेटते हुए परिक्रमा की। इसके बाद बांस से बने नये पंखे से वट वृक्ष को हवा दी।

गूंजते रहे मंगलगीत

इस दौरान मंगलगीत गूंजते रहे। अर्पित गई सुहाग सामग्रियों को पुरोहित को दान दिया और व्रत के माहात्म्य से संबंधित कथाएं सुनी। इसके बाद वट वृक्ष की कली पानी के साथ निगलकर पारण की। पुराणों के अनुसार यह व्रत सावित्री द्वारा अपने पति को पुन: जीवित करा लेने की स्मृति में रखा जाता है। वट वृक्ष की पूजा अखंड सौभाग्य व अक्षय उन्नति के लिए की जाती है।

सुख-समृद्धि के लिए की पीपल की पूजा

सोमवती अमावस्या होने से महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा से पहले पीपल वृक्ष के रूप में चंद्र देव, पितृ देव व भगवान जनार्दन की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की। वृक्ष की 108 बार परिक्रमा कर हर बार नैवेद्य अर्पित किया। किसी ने मूंगफली तो किसी सिक्का या अन्य सामग्री अर्पित कर और जल देकर मंगल कामना की।

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