उत्तराखंड सरकार में नहीं थम रहा खाद्य विभाग में ट्रांसफर विवाद, जानिए पूरा मामला

खाद्य विभाग में अफसरों के तबादलों पर छिड़ी रार में जहां विभागीय मंत्री रेखा आर्य का पक्ष पूरी तरह सही नहीं है वहीं सचिव एवं आयुक्त सचिन कुर्वे ने भी नियम तोड़ा है। शुक्रवार को मंत्री और अफसर के बीच विवाद की पड़ताल की तो यह बात सामने आई।  

तबादला ऐक्ट के अनुसार,तबादले को मंत्री के अनुमोदन की जरूरत नहीं है। खासकर समूह‘ख’स्तर के अफसरों के मामले में विभागीय स्थायी समिति की सिफारिश के आधार पर विभागाध्यक्ष ही फैसला ले सकता है।

दूसरी तरफ, खाद्य आयुक्त के रूप में कुर्वे को डीएसओ के तबादले का हक है, लेकिन उन्होंने तबादला टाइम टेबल का उल्लंघन करते हुए जो जल्दबाजी दिखाई, वो सवाल उठाने वाली है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब मंत्री ने सचिव को नैनीताल के डीएसओ मनोज वर्मन को फोर्स लीव पर भेजने का आदेश निरस्त करने को कहा।

इसके बाद वर्मन का आदेश निरस्त होने के बजाए छह डीएसओ के तबादले के आदेश जारी हो गए। यहीं से मुद्दे ने तूल पकड़ा। मंत्री ने सचिव पर उनके आदेश की नाफरमानी का आरोप लगाते हुए शिकायत की है। अब विभाग में सीएम के लौटने का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। सीएम को इस मामले में निर्णय लेना है।

स्थानांतरण के लिए यह है व्यवस्था
तबादला ऐक्ट के बिंदु 21 में तबादले के अधिकार तय किए गए हैं। इसके अनुसार समूह ‘क‘ के अधिकारियों के तबादले, शासन स्तर पर बनी समिति की संस्तुति के आधार पर तय होंगे। समूह ‘ख’ के अफसरों के तबादले, तबादला समिति की सिफारिश पर संबंधित विभाग के विभागाध्यक्ष यानी एचओडी द्वारा किए जाएंगे।

ऐक्ट में यह भी प्रावधान है कि जिस विभाग में एचओडी नहीं होगा, वहां समूह ख के अफसरों के तबादले, तबादला समिति की सिफारिश के आधार पर शासन के स्तर पर किए जा सकते हैं। ऐसे में मंत्री की, तबादले के लिए पहले अनुमोदन लेने की बात का औचित्य नहीं है।

तबादलों में जल्दबाजी से उठ रहे सवाल
इस साल तबादला सत्र के लिए आठ अप्रैल को तत्कालीन कार्मिक सचिव अरविंद सिंह ह्यांकी ने टाइम टेबल तय किया था। इसके तहत एक मई तक तबादला समितियों का गठन होना था। 15 मई तक अनिवार्य तबादले के दायरे में आ रहे कार्मिकों की लिस्ट सार्वजनिक की जानी थी।

25 जून से पांच जुलाई के बीच तबादला समिति को बैठक कर अपनी संस्तुति संबंधित अधिकारी को देनी है। 10 जुलाई तक तबादला आदेश जारी होने हैं लेकिन खाद्य विभाग में इस टाइम टेबल का पालन नहीं किया गया। यही बात खाद्य आयुक्त पर सवाल उठाती है।

कर्मचारी नेता बोले-तबादला ऐक्ट बनाया है तो अब उसमें हस्तक्षेप न हो…
-मंत्री-सचिव विवाद में तबादलों के जानकार सचिव के फैसले का गलत नहीं मान रहे। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के पूर्व अध्यक्ष ठाकुर प्रह्लाद सिंह ने ‘हिन्दुस्तान’ से कहा कि तबादला ऐक्ट राज्य कैबिनेट ने पास किया है। कैबिनेट में मंत्री ही अनुमोदन देते हैं। ऐक्ट में मंत्रियों के अनुमोदन देने की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इस मामले में मंत्री से अनुमोदन लेने की कोई जरूरत नहीं।

-पेयजल निगम कर्मचारी महासंघ के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण रावत की राय भी अलग नहीं है। उन्होंने कहा कि तबादला ऐक्ट में हर स्तर के तबादले की एक तय व्यवस्था है। उसी का पूरी तरह पालन होना चाहिए। ऐक्ट से हटकर किसी भी सूरत में तबादले नहीं होने चाहिए। ऐक्ट से हटकर होने वाले तबादलों और मंत्रियों से अनुमोदन लेने के कारण असल लाभार्थियों को लाभ नहीं मिल पाता है।

खाद्य विभाग में सात अप्रैल 2018 में तबादलों के लिए स्थायी समिति का गठन किया जा चुका है। साथ ही सुगम-दुर्गम क्षेत्र भी 14 मई 2019 से तय हैं। स्थायी समिति की तबादलों की सिफारिश पर खाद्य आयुक्त के रूप में 28 अप्रैल 2022 को अनुमोदन किया जा चुका था। 
सचिन कुर्वे, खाद्य आयुक्त/सचिव (मंत्री को भेजे अपने जवाब में)

सचिव को तबादला ऐक्ट का ज्ञान ही नहीं है। तबादला टाइम टेबल तय होने के बावजूद विभागीय तबादला समिति की बैठक कर महज डेढ़ घंटे में ही ट्रांसफर के आदेश कर दिए जाते हैं। तबादला टाइम टेबल का पालन न करना, यह सचिव द्वारा तबादला ऐक्ट का खुला उल्लंघन है। साथ ही मंत्री के आदेश की अवहेलना भी है। इस संबंध में मुख्यमंत्री को भी अवगत करा दिया गया है। 
रेखा आर्य, खाद्य मंत्री

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