2024 का घमासान
कृष्ण मोहन श्रीवास्तव
2024 के लोकसभा चुनावों की लड़ाई बड़ी दिलचस्प हो चली है। एक ओर प्रमुख विपक्षी दलों ने 23 जून को पटना में बैठक करके भाजपा को सत्ता से बाहर करने का अपना संकल्प स्पष्ट कर दिया है तो दूसरी ओर ठीक उसी समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका यात्रा में मिले सम्मान और भारतीय डायस्पोरा के उत्साह ने यह बता दिया है कि फिलहाल प्रधानमंत्री के विकल्प के तौर पर नरेंद्र मोदी को चुनौती देना सरल नहीं है।
हालांकि कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया है और विपक्षी दलों को राजनीतिक दौड़ के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध करा दिया है। 23 जून की पटना बैठक इसी का प्रमाण है। कई मुद्दों पर परस्पर असहमति होने के बावजूद ये दल भाजपा के विरुद्ध संगठित होने को तत्पर हैं। इन दलों का मानना है कि भाजपा का जनाधार खिसकने लगा है और मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे भाजपा को हराने के लिए अचूक अस्त्र का काम करेंगे।
प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की उम्मीदें यूं ही नहीं हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में जिस प्रकार कांग्रेस को जनता का समर्थन मिला उसने पार्टी को एक नया जीवन देने का काम किया है। हिमाचल और कर्नाटक की जीत कांग्रेस के मजबूत होते संगठन और नेतृत्व में विश्वास का ही प्रतिफल है। क्षेत्रीय दल अपने अपने राज्यों में और कांग्रेस पूरे देश में भाजपा को चुनौती देकर उसके चुनावी रथ पर लगाम लगा सकते हैं।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही लड़े और जीते हैं। उत्तर प्रदेश, आसाम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को छोड़ दें तो अन्य किसी राज्य में भाजपा के पास वैसा लोकप्रिय नेतृत्व भी नहीं है। दूसरी ओर मंहगाई और बेरोजगारी जैसे विषय भी भाजपा के लिए निरंतर सिरदर्द बने हुए हैं। ओल्ड पेंशन स्कीम और फ्रीबीज़ यानी मुफ़्त में मिलने वाली सुविधाओं के मुद्दे ने भी भाजपा को गहरा आघात पहुंचाया है और उसे भी इन्हें लागू करने को मजबूर होना पड़ सकता है।
कर्नाटक चुनाव में जिस प्रकार मुस्लिम वोट एकमुश्त कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हुआ है उससे मुसलमानों को भाजपा से जोड़ने की पार्टी की मुहिम को भी धक्का लगा है। मुस्लिम ध्रुवीकरण हमेशा ही भाजपा के लिए चैलेंज बना रहता है। फ़िर दस साल की सरकार के लिए एंटी इनकंबेंसी की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता है।
इन सबके बावजूद क्या उपरोक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण होगा? हालांकि भाजपा के लिए ये चुनाव आसान नहीं होने वाला है लेकिन कोई भी दल केंद्र के चुनाव में सीधे तौर पर भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। राष्ट्रीय पार्टी के रुप में कांग्रेस ही भाजपा को चुनौती दे सकती है परंतु हाल के वर्षों में उसके जनाधार में महत्वपूर्ण कमी आई है।
‘प्रधानमंत्री कौन बनेगा’ यह प्रश्न भाजपा के लिए जितना सरल है, विपक्षी दलों के लिए उतना ही कठिन भी है। एक ओर जहां नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी विश्वसनीयता काफ़ी हद तक बनाए रखी है वहीं दूसरी ओर विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिए कोई एक सर्वमान्य चेहरा नहीं है। संगठन के स्तर पर देखा जाए तो भाजपा अन्य दलों की अपेक्षा सदैव चुनाव के लिए मिशन मोड में नज़र आती है। 2024 के चुनावों के लिए उसने अपनी उपलब्धियों को जनता को बताने के लिए न केवल कार्यकर्ताओं को घर-घर जाने बल्कि मंत्रियों को भी अपने-अपने क्षेत्र में जाने के निर्देश दिए हैं।
धारा 370 के उन्मूलन और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का श्रेय भी भाजपा को जाता है जिसका चुनावी लाभ उसे मिलता भी है। धारा 370 पर जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन भाजपा ने किया है उससे जनता में समान नागरिक संहिता व जनसंख्या नियंत्रण बिल को लेकर भी भाजपा से उम्मीदें हैं। राम मंदिर के अतिरिक्त काशी विश्वनाथ कॉरीडोर, करतारपुर कॉरीडोर, महाकाल लोक आदि तीर्थों के विकास से पर्यटन एवं रोजगार के क्षेत्र में बेहतर अवसर उपलब्ध हुए हैं। भाजपा ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विकास का जो मॉडल जनता के समक्ष प्रस्तुत किया है उसने नि:संदेह भाजपा के जनाधार को व्यापकता प्रदान की है।
2024 की लड़ाई निश्चित रूप से कांटे की होने वाली है। कांग्रेस जहां अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है तो वहीं भाजपा भी अपनी ज़मीन खोना नहीं चाहती है। यदि विपक्षी दलों ने आपसी असहमति को छोड़कर एक होकर चुनाव लड़ा तो वह अवश्य भाजपा के लिए संकट पैदा करेगी। दूसरी ओर भाजपा भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस चुनौती के लिए तैयार दिख रही है। भाजपा के जनाधार को खिसकाना अभी भी विरोधियों के लिए टेढ़ी खीर है। राजनीति में असंभव तो कुछ भी नहीं है लेकिन यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।