पहले बकैती फिर डकैती
पत्रकार जे.पी. शुक्ल की कलम🖊️ लखनऊ से…
वाह भाई! देश के नेता बकैती कर-कर के पहले सत्ता पाते हैं। फिर सत्ता की कुर्सी पाकर राजनेता बनते हैं। उसके बाद खुद की पार्टी से बगावत करके किंगमेकर बनते हैं। …जब संविधान का खंभा मजबूती से पकड़ कर बैठते हैं। तब जनता की गाढ़ी कमाई पर डकैती डालते हैं। हास्यास्पद तो तब हो जाता है जब देश की राष्ट्रीय पार्टियों की बैसाखी क्षेत्रीय पार्टियां बनती हैं। शरद जी दूध के धुले नहीं हैं।जो बीज बोए हैं। वहीं काट रहे हैं। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’, ‘घर का भेदी लंका ढाए’ यह दोनों कहावत महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता और चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार पर आज की राजनीतिक हलचल में बहुत ही सटीक चरितार्थ हो रही है। हालांकि देश के राजनीतिक दल कोई भी हों वह *देशहित* बाद में सोचते हैं। पहले वह *स्वयं हित* फिर *पार्टी हित* उसके बाद *जनहित* के बारे में सोचते हैं। एक खास बात और है कि राजनीतिक दल कोई भी हो बकैती करने में कम नहीं रहते। यह बकैती करते-करते जब सत्ता की सीढ़ी पर चढ़कर उसकी कुर्सी तक पहुंच जाते हैं तो फिर जिसने इनको कुर्सी पर बिठा रखा होता है, उसी के घर में बकैती कर करके डकैती डालते हैं। यह आलम इनका तब तक जारी रहता है, जब तक कि सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहते हैं।जिस दिन यह सत्ता की कुर्सी से हट जाते हैं फिर अपने उसी अंदाज में बकैती करने लगते हैं। इनके पास दो ही कार्य होते हैं। अगर सत्ता में नहीं है तो बकैती करना है और सत्ता में है तो डकैती करना है। जनता इनकी तरफ देख करके यह सोचती है *हाय अल्लाह! मरता क्या न करता*। हमारे देश का संविधान ही इन स्वार्थी नेताओं ने इस तरह बनाया है कि *आगे खाई पीछे कुंआ* है। मतदान न करो तो मन की बात नहीं आती और मतदान कर दो तो यह सदन में बैठकर हमे ही मुंह बिराते हैं। फिर वहां बैठकर डकैती डालने का प्लान बनाते हैं। जब तक यह जनता के बीच में रहते हैं, *सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता की दीवार खड़ी करने का जुगाड़* बनाते हैं। इसीलिए तब तक सिर्फ बकैती ही करते हैं। *शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने पीठ में छुरा नहीं बल्कि शरद पवार की छाती पर बैठकर मूंग दर्रा है।*शरद पवार भी कम नहीं हैं। यह भी बागियों के पितामह हैं। कांग्रेस से बग़ावत न किए होते तो शायद आज *पूर्व प्रधानमंत्री* होते। *हालांकि बकैती के बल पर UPA की गोद में बैठकर देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई ही नही पूरे देश को खूब लूटा* है। शरद पवार को चिंता इस बात की है कि अब जब *दल का बल ही नही होगा तो डकैती कैसे डालेंगे*? इसीलिए *फिर बकैती शुरू कर दिया* है।*”पहले बकैती करो फिर डकैती डालो”*।