
दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन होता है भाई दूज पर। यह पांच दिवसीय पर्व प्रेम, प्रकाश और पारिवारिक बंधन का उत्सव है। इस वर्ष भाई दूज 23 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। नाम से ही स्पष्ट है, यह पर्व भाई-बहन के स्नेह और अटूट रिश्ते का प्रतीक है। यह पर्व रक्षाबंधन की तरह ही प्रेम और सुरक्षा का व्रत है, फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें राखी बांधने की जगह बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर आरती करती है।
भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां भाई और बहन साथ पूजा कर सकते हैं। इन पवित्र स्थलों पर भाई-बहन के दर्शन से रिश्ते में मधुरता, आयु और समृद्धि बढ़ती है। भाई दूज केवल एक पर्व नहीं बल्कि भावना, आस्था और रिश्ते की गहराई का प्रतीक है। अगर इस बार आप अपने भाई या बहन के साथ कोई यादगार यात्रा करना चाहते हैं, तो इन मंदिरों की यात्रा जरूर करें।यह सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि रिश्तों को नई ऊर्जा देने वाला अनुभव है।
यमुना धर्मराज मंदिर, मथुरा
उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित यह प्राचीन मंदिर यमराज और उनकी बहन यमुना माता को समर्पित है। कहा जाता है कि भाई-बहन यदि यहां यमुना में साथ स्नान करें और मंदिर में दर्शन करें, तो उनके बीच प्रेम, सम्मान और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। भाई दूज के दिन यहां दर्शन का विशेष महत्त्व है, और हजारों श्रद्धालु इस अनोखे संबंध का उत्सव मनाने पहुंचते हैं।
भैया बहिनी गांव, सिवान
बिहार के सिवान जिले के महाराजगंज अनुमंडल में स्थित यह स्थान भाई-बहन की अनोखी भक्ति का प्रतीक है। यहां का भैया-बहिनी मंदिर करीब 500 वर्ष पुराना बताया जाता है। कथा है कि एक भाई-बहन ने इसी स्थान पर समाधि ली थी, और उसी स्थान पर आज दो विशाल वटवृक्ष खड़े हैं, जिनकी जड़ों का कोई अंत नहीं। यहां भाई-बहन वटवृक्ष की परिक्रमा करते हैं और जीवनभर साथ बने रहने की कामना करते हैं।
बिजनौर का भाई-बहन मंदिर
उत्तर प्रदेश के बिजनौर के चूड़ियाखेड़ा जंगल में स्थित यह मंदिर भाई-बहन की पवित्रता और त्याग की गाथा सुनाता है। किंवदंती है कि सतयुग में एक भाई अपनी बहन को ससुराल से वापस ला रहा था, जब डाकुओं ने दोनों पर हमला किया। भगवान से रक्षा की प्रार्थना करते हुए भाई-बहन पत्थर की प्रतिमा में परिवर्तित हो गए, और आज भी वहां उनकी प्रतिमाएं देव रूप में विराजमान हैं। भाई दूज पर यहां दर्शन से पारिवारिक बंधन और मजबूत होता है