कैलिग्राफी को मिल रही हैं कंप्यूटर और और स्मार्ट फोन से चुनौती
स्मार्टफोन और कीबोर्ड की मदद से स्क्रीन पर खूबसूरत हर्फ़ भले ही उभर आयें लेकिन हाथ से लिखी जाने वाली सुंदर लेखन की कला यानी कैलिग्राफी से उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता. इस तथ्य के बावजूद आज इस कला को सीखने वाले कम हो रहे हैं और उनकी रोजी रोटी पर भी साया गहराने लगा है. पिछले 20 सालों से बतौर कैलिग्राफी आर्टिस्ट का काम कर रहे जुबैर (36) इस कला के सामने आ रही चुनौतियों के बारे में बताते हुये कहते हैं कि समाज की तरक्की के लिए अहम है कि नयी टेक्नोलॉजी को अपनाया जाए लेकिन कम्प्यूटर कभी भी वो कुव्वत हासिल नहीं कर सकेगा जो एक कैलिग्राफी आर्टिस्ट में होती है.
जुबैर बताते हैं कि इस काम से होने वाली आमदनी में गिरावट आई है. लोग-बाग अब कम्प्यूटर की मदद से प्रिंट आउट ले लेते हैं. इससे उन जैसे कलाकारों के पेशे पर असर हो रहा है और अब कम लोग इसे सीखने में दिलचस्पी ले रहे हैं. बच्चों को इस कला से रूबरू कराने के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एडं कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) ने हाल ही में बच्चों के लिए एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया.
इसमें तीस स्कूलों के करीब 100 बच्चों ने बड़े उत्साह से भाग लिया. जुबेर ने कहा कि कैलिग्राफी या सुलेखन हमारी विरासत का हिस्सा है और इसे नयी तकनीक की बलि पर नहीं चढ़ाया जा सकता. हमें इसे बचाना होगा. हमारे देश में संस्कृत की पांडुलिपियां ऐसे ही लिखी गईं और फिर मुगल काल में इस कला ने नए मुकाम हासिल किए . इस बेजोड़ कला का मुकाबला कम्प्यूटर का कीबोर्ड और स्मार्टफोन नहीं कर सकते हैं.
भारतीय जनसंचार संस्थान के संकाय सदस्य रमेश तहिल्यानी ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कैलिग्राफी में लोगों को अपनी तरफ खींचने की ताकत है. खास मौकों के लिए बनाए गए प्रमाणपत्रों या विवाह कार्डों में कैलिग्राफी की मांग है.