‘राजनीति के जादूगर’, राजस्थान में मुख्यमंत्री बनने की रेस में आगे है
राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan elections 2018) में कांग्रेस ने कुल 199 विधानसभा सीटों में से 99 सीटों पर कब्जा किया है. बीजेपी को 73 सीटें मिलीं. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 6 सीटें झटकी हैं. वहीं 21 सीटों पर अन्य ने कब्जा किया है. इन चुनावों में कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
कांग्रेस को इतनी बड़ी जीत दिलाने में वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत की भागीदारी को अहम माना जा रहा है. साल 2013 के राजस्थान विधानसभा चुनाव और फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद भी अशोक गहलोत ने राज्य में अपनी पार्टी को प्रासंगिक बनाए रखा. बुधवार को जयपुर में कांग्रेस के विधायक दल की बैठक भी होगी. अशोक गहलोत ने विधायक दल की बैठक से पहले कहा है कि पार्टी के सभी नेताओं को आलाकमान का फैसला मानना चाहिए. उन्होंने कहा कि पार्टी मुझे जो भी पद देगी वो मुझे कुबूल होगा. सीएम का नाम दोपहर बाद तक तय हो जाएगा.
राजस्थान में ‘राजनीति का जादूगर’ माने जाने वाले गहलोत ने 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत के जादुई आंकड़े के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है और ऐसी अटकलें हैं कि वह एक बार फिर मुख्यमंत्री के तौर पर राजस्थान की कमान संभाल सकते हैं.
ये हैं वो 5 बातें, जिनसे गहलोत का नाम है आगे
1. राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly elections 2018) में कांग्रेस के बागी नेता, जो निर्दलीय विधायक बने हैं, वो अशोक गहलोत के बेहद करीबी बताए जाते हैं. जैसे बाबूलाल नागर, महादेव सिंह खंडेला, रामकेश मीणा निर्दलीय विधायकों का भी अशोक गहलोत को समर्थन है.
2. राजस्थान में बहुमत के आसपास ही कांग्रेस पहुंची है, इसलिए अशोक गहलोत की संभावना ज्यादा है. वैसे भी लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं. तो कांग्रेस अशोक गहलोत के नाम को भुनाना चाहेगी.
3. अशोक गहलोत सरदारपुरा से चुनाव जीते हैं. माली समुदाय में गहलोत का अच्छा प्रभाव है. राजस्थान में जनता की नब्ज पकड़े रखने वाले नेता के तौर पर उनकी पहचान है.
4. कुछ महीने पहले गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दमदार प्रदर्शन का श्रेय गहलोत को ही दिया जाता है.
5. पिछले कुछ समय से कांग्रेस के महासचिव (संगठन) का पदभार संभाल रहे गहलोत को जमीनी नेता और अच्छा संगठनकर्ता माना जाता है.
इंदिरा भी थीं प्रभावित
जानकारों का कहना है कि ‘मारवाड़ का गांधी’ माने जाने वाले गहलोत को राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लेकर आई थीं. ऐसा कहा जाता है कि वह पूर्वोत्तर क्षेत्र में शरणार्थियों के बीच अच्छा काम कर रहे थे और इंदिरा उनके काम से काफी प्रभावित थीं.
1974 में राजनीति में आए
मूलरूप से जोधपुर के रहने वाले गहलोत (67) 1998 से 2003 और 2008 से 2013 तक राजस्थान के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. तीन मई 1951 को जन्मे गहलोत ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1974 में एनएसयूआई के अध्यक्ष के रूप में की थी. वह 1979 तक इस पद पर रहे.
5 बार लोकसभा पहुंचे
गहलोत 1979 से 1982 तक कांग्रेस पार्टी के जोधपुर जिला अध्यक्ष रहे और 1982 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने. उसी दौरान 1980 में गहलोत सांसद बने. वह 1980 से 1999 तक पांच बार 7वीं, 8वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए. गहलोत 1999 से जोधपुर के सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वह 11वीं, 12वीं,13वीं और 14वीं राजस्थान विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं. पांच बार सांसद रह चुके गहलोत पांचवीं बार विधायक बने हैं.
मंत्री पद भी संभाले
वह 1982-1983 तक पर्यटन उप-मंत्री और 1983-84 में नागरिक उड्डयन, 1984 में खेल उप-मंत्री, 1984-85 में पर्यटन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री, 1991-93 तक वस्त्र राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का पदभार संभाल चुके हैं.
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3 बार कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे
गहलोत 2004-2009 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव (दिल्ली और सेवादल प्रभारी), 2004 में कांग्रेस कार्य समिति और हिमाचल प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रभारी रह चुके हैं. राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी में कई अहम पदों पर रह चुके गहलोत तीन बार कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं.
शरणार्थी शिविरों में भी काम किया
कई देशों की यात्रा कर चुके गहलोत ने राजनीति के अलावा 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी शरणार्थियों के शिविरों में काम किया और कई सामाजिक गतिविधियों में शामिल रहे. गहलोत ने सुनीता गहलोत से विवाह किया. उनके एक पुत्र और एक पुत्री है.