ग्रामीण भारत में स्कूली शिक्षा के हाल का विश्लेषण
आज सबसे पहले हम आप सभी लोगों की एक छोटी और बहुत आसान सी परीक्षा लेना चाहते हैं. ये दूसरी कक्षा की हिंदी की किताब से लिया गया एक पैराग्राफ है. क्या आप और आपके घर के बच्चे हिंदी का ये पैराग्राफ पढ़ सकते हैं?
इसमें लिखा है… “हर रविवार नानी घर आती है. हमारे लिए मिठाई लाती है. मैं नानी के साथ सोता हूं. वह मुझे कहानी सुनाती है.” ये दूसरी कक्षा की बहुत सामान्य हिंदी है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में तीसरी कक्षा के 73 प्रतिशत बच्चे. पांचवीं कक्षा के 50 प्रतिशत बच्चे और आठवीं कक्षा के 27 प्रतिशत बच्चे. ये साधारण सा वाक्य भी नहीं पढ़ सकते. ये हमारे देश के बच्चों की बौद्धिक क्षमता का स्तर है.
ये आंकड़े 2018 की Annual Status of Education Report से लिए गए हैं. एक गैर सरकारी संगठन हर वर्ष ग्रामीण भारत की शिक्षा के स्तर को दिखाने वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है. ये 336 पन्नों की रिपोर्ट है, जिसका सारांश आज हम आपको बताएंगे. भारत को किसी ज़माने में विश्व गुरु कहा जाता था.
भारत. आर्यभट्ट, वाराह मिहिर, कणाद और चाणक्य जैसे महान विद्वानों का देश है. भारत नालंदा और तक्षशिला जैसे महान विश्वविद्यालयों का देश है. करीब 1300 वर्ष पहले नालंदा और तक्षशिला विश्व विद्यालयों में दुनिया भर से लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे.
भारत ने शून्य की खोज की. भारत ने दुनिया को गिनती सिखाई और आज भारत के ही बच्चे सामान्य हिंदी की किताब पढ़ने में असमर्थ हैं! आज भारत के बच्चे जोड़ने और घटाने जैसे गणित के सामान्य सवालों को हल नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए आज हम भारत की शिक्षा व्यवस्था की कमियों का संपूर्ण विश्लेषण करेंगे.
ASER की रिपोर्ट में क्या लिखा है? ये हम आपको बताएंगे लेकिन सबसे पहले ये जानिए कि ये रिपोर्ट किस तरह तैयार की गई है. एक गैरसरकारी संगठन ‘प्रथम’ ने भारत के 28 राज्यों के 596 ज़िलों के ग्रामीण इलाकों से अपने आंकड़ों का इकट्ठा किया है. इस संस्था ने 3 वर्ष से 16 वर्ष की उम्र के 5 लाख 50 हजार बच्चों का परीक्षण किया है.
इस संस्था ने ग्रामीण भारत के प्राइवेट और सरकारी… सभी स्कूलों के बच्चों से बात की है. खास बात ये है कि इस NGO ने इसके लिए 3 लाख 50 हजार परिवारों से संपर्क किया. इस रिपोर्ट में लिखा है कि आठवीं कक्षा Pass करने वाले बहुत सारे छात्र, गणित के साधारण सवालों को भी हल नहीं कर सकते. आठवीं कक्षा के 56 प्रतिशत छात्र, 3 अंकों की संख्या को एक अंक की संख्या से Divide नहीं कर सकते, यानी भाग नहीं दे सकते. पांचवी कक्षा के 72 प्रतिशत छात्र किसी भी तरह का Division या भाग नहीं कर सकते. तीसरी कक्षा के 70 प्रतिशत छात्र एक संख्या को दूसरी संख्या से घटाना नहीं जानते.
अगर सिर्फ देश के सरकारी स्कूलों की बात करें तो तीसरी कक्षा के करीब 79 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जो दो संख्याओं को घटाना नहीं जानते. सबसे बुरी स्थिति राजस्थान की है.. यहां इस तरह के बच्चों की संख्या 92 प्रतिशत है. केरल की स्थिति सबसे बेहतर हैं वहां सरकारी स्कूलों में दूसरी कक्षा के 44.7 प्रतिशत बच्चे दो संख्याओं को घटाना जानते हैं. इस Survey से ये भी पता चला है कि उत्तर भारत के मुकाबले, दक्षिण भारत के राज्यों में बच्चों की शिक्षा का स्तर बेहतर है. अंकगणित की जानकारी में लड़कियां, लड़कों से पीछे हैं.
ग्रामीण भारत में 50 प्रतिशत छात्रों के मुकाबले सिर्फ 44 प्रतिशत छात्राएं ही Division यानी भाग.. करना जानती हैं. लेकिन रिपोर्ट ये भी कहती है कि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में लड़कियों की शिक्षा का स्तर, लड़कों से बेहतर है. पिछले 13 वर्षों से ये रिपोर्ट प्रकाशित हो रही है. अगर हम पुराने आंकड़ों से, नये आंकड़ों की तुलना करें, तो शिक्षा में सुधार भी नज़र आता है. लेकिन इन सुधारों की गति बहुत धीमी है. वर्ष 2008 में पांचवी कक्षा के 37 प्रतिशत बच्चे संख्याओं को जोड़ना और घटाना नहीं जानते थे.
लेकिन वर्ष 2018 में ऐसे बच्चों की संख्या 28 प्रतिशत हो चुकी है. यानी थोड़ा सुधार हुआ है. भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव करने के लिए, भारत के इतिहास को समझने की ज़रूरत है. आज दुनिया में चीन को सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश कहा जाता है. माना जाता है कि कुछ वर्षों के अंदर चीन… दुनिया के हर देश को पीछे छोड़कर Super Power बन जाएगा. दुनिया में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो अब ये मान चुके हैं कि चीन Super Power बन चुका है.
लेकिन आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि इतिहास का एक दौर ऐसा भी था जब चीन के बहुत सारे छात्र पढ़ने के लिए भारत आते थे. आज से करीब 1500 वर्ष पहले भारत के दो प्राचीन विश्वविद्यालय यानी तक्षशिला और नालंदा ज्ञान और विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र थे. तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले चीन के छात्र पूरे जीवन भारत के शिक्षकों से प्रभावित रहते थे. वो भारत के शिक्षकों को चिट्ठियां लिखते थे और उनके लिए उपहार भी भेजते थे. चीन के छात्र, भारतीय संस्कृति से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि उन्होंने अपने चाइनीज़ नाम बदलकर भारतीय नाम रख लिए थे.
चीन से सबसे ज्यादा छात्र नालंदा विश्व विद्यालय में पढ़ने के लिए आते थे. कई विद्वानों ने तो नालंदा विश्वविद्यालय को चीन और भारत के संबंधों का सेतु भी कहा था. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवी शताब्दी में हुई थी. उस वक्त वहां करीब 10 हज़ार छात्र पढ़ते थे. नालंदा विश्वविद्यालय के छात्रों में चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग (Itsing) भी शामिल थे. ह्वेन सांग, नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे. ह्वेनसांग ने 6 साल तक नालंदा विश्व विद्यालय में रहकर कानून की पढ़ाई की थी.
चीन के छात्र इत्सिंग (Itsing) को Chinese-संस्कृत शब्दकोश तैयार करने का श्रेय दिया जाता है. चीन के कई छात्रों ने अपने भारतीय नाम रख लिए थे. जैसे ह्वेन-ची (Hiuen-Chi) ने अपना नाम प्रकाश-मति रखा था, ताओ-ही (Tao-Hi) ने अपना नाम श्रीदेव रखा था, सिनचिक (Sin-Chik) ने अपना नाम चरित्रवर्मा रखा था, चिहिंग (Chihing) ने अपना नाम प्रज्ञादेव रखा था और तांग (Tang) ने अपना नाम प्रज्ञावर्मा रख लिया था. ये सारी जानकारियां हमें तीन किताबों के अध्ययन से मिली है.
1- New Models of Human Resource Management in China and India
2- Meandering Pastures of Memories
और
3- Indian Civilization and Culture
अब आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि अगर भारत विश्व गुरु था और भारत की शिक्षा व्यवस्था इतनी अच्छी थी. तो आज शिक्षा के क्षेत्र में हमारी स्थिति इतनी दयनीय कैसे हुई ? 1300 वर्ष पहले भारत पर अरब और तुर्क देशों की सेनाओं ने हमले शुरू किया. विदेशी हमलावरों ने भारत के विश्वविद्यालयों पर हमले किए. 12वीं शताब्दी के अंत में तुर्क सेनापति बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्व विद्यालय पर हमला करके वहां के सभी शिक्षकों की हत्या कर दी थी. विश्वविद्यालय में मौजूद एक बहुत बड़ी Library को भी जलाकर राख कर दिया गया था. इस नरसंहार और विध्वंस में हजारों दुर्लभ पुस्तकें जलकर राख हो गईं थीं. बहुत सारे महत्वपूर्ण दस्तावेज नष्ट हो गए थे.
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग लगने के बाद भी 3 महीने तक पुस्तकालय सुलगता रहा था. कई विद्वानों का मानना है कि चीन के विद्यार्थियों द्वारा किया गया बहुत सारा शोध कार्य भी इसी हमले में खत्म हो गया.
एक हजार वर्षों की गुलामी ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्र में भारत का बहुत बड़ा नुकसान किया. आगे हम आपको बताएंगे कि कैसे अंग्रेज़ी भाषा की वजह से भारत के लोगों की नैसर्गिक प्रतिभा का दमन हुआ है. लेकिन इससे पहले आप ये रिपोर्ट देखिए… ये भारत के स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का एक वीडियो विश्लेषण है. हमारे देश के बच्चों की योग्यता में कोई कमी नहीं है. ये बात सभी को याद रखनी चाहिए कि हमारे देश के बच्चे Fail नहीं हुए हैं. इस देश का System Fail हुआ है.
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की नींव ही कमज़ोर तरीके से रखी गई है. हमारे देश में अंग्रेज़ी को राष्ट्रभाषा और प्रांतीय भाषाओं से ऊपर जगह दी गई है. अगर कोई व्यक्ति मूल रूप से हिंदी भाषी है तो वो हिंदी भाषा में ही सोच सकता है. भारत की शिक्षा व्यवस्था की समस्या ये है कि सारा ज़ोर अंग्रेज़ी पर लगा दिया गया है. मातृभाषा के ज्ञान से पहले…. अंग्रेज़ी सीखने वाला व्यक्ति मौलिक विचारों से कट जाता है.
क्या आपने कभी सोचा ? हमारे देश में बड़े-बड़े आविष्कार क्यों नहीं होते हैं ? दूसरे देशों के बड़े-बड़े वैज्ञानिक अपनी मातृभाषाओं में Research करते हैं. इसलिए उनके विचार मौलिक होते हैं और वो कुछ नया सोच पाते हैं. विद्वान बनने के लिए अंग्रेज़ी कोई अनिवार्य भाषा नहीं है. फिल्में समाज का आईना होती है. हिंदी सिनेमा में भी भारत वर्ष की इस मानसिकता को दिखाया गया है. आज हम ऐसी ही एक फिल्म का दृश्य आपको दिखाना चाहते हैं.