परिवार की कुशलता, समृद्धि और कष्टों को दूर करने का पर्व सकट गुरुवार को है

 परिवार की कुशलता, समृद्धि और कष्टों को दूर करने का पर्व सकट गुरुवार को है। पर्व को लेकर बाजारों में तिल के लड्डुओं के साथ ही पूजन में प्रयोग होने वाली अन्य सामग्रियों की दुकानें सजी हैं। आलमबाग कोतवाली के सामने और निशातगंज के अलावा डालीगंज समेत अन्य बाजारों की दुकाने ग्राहकों को अपनी ओर खींच रही हैं। 

आचार्य राकेश पांडेय ने बताया कि यह पर्व श्री गणेश के पूजन का पर्व है। विवाहित महिलाएं व परिवार और बच्चों के ऊपर आने वाले संकटों को दूर करने के लिए सकट व्रत रखी जाती हैं। चंद्रमा पूजन के इस पर्व को चंद्रोदय के समय अनुसार लिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्री गणेश देवताओं का संकट दूर कर उनके कष्ट दूर किए थे। भगवान शंकर उन्हें कष्ट निवारण देवता होने की संज्ञा भी दी थी।

ऐसे होता है पूजन

आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि गुड़ या चीनी की चाशनी में काले तिल को मिलाकर उसका लड्डू बनाया जाता है। दिनभर निर्जला व्रत रखने वाली महिलाएं रात्रि को श्री गणेश के आह्वान के साथ चंद्रोदय के समय पूजन करती हैं। पूजन के दौरान तिल के बने लड्डुओं का भोग चढ़ाया जाता है। पूजन के उपरांत तिल के लड्डुओं के अलावा गुड़ के बने रामदाना, लइया, और मूंगफली  के लड्डुओं समेत गजक को भी चढ़ाया जाता है। 

दी जाती है कुरीतियों की बलि

माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर काले तिल से बने बकरे की बलि देने का प्रावधान है। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि इसके पीछे मान्यता है कि हम अपने काले पापों की बलि दें और सत्यकर्म की ओर आगे बढ़ें। व्रती महिलाएं संतान के पापों की बलि देने के प्रतीक स्वरूप काले तिल के बने बकरे की बलि देती हैं। बलि के समय बकरे जैसी आवाज भी निकाली जाती है। आचार्य ने बताया कि पूजन सामग्री को बांस की टोकरी में रखकर पूजन के लिए जाना चाहिए। गुरुवार को रात्रि 9:10 बजे चंद्रोदय होगा। चंद्रमा को अघ्र्य देने और पूजन के बाद ही व्रत का पारण करने की मान्यता है। कुछ महिलाएं दूसरे दिन सूर्योदय के बाद दान पुण्य के उपरांत व्रत का पारण करती हैं।

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