ईरान का झुकाव हाल ही में भारत की ओर ज्यादा बढ़ा है और पाकिस्तान के खिलाफ भी
भारत और पाकिस्तान के बीच इन दिनों सरहद पर तनाव होने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर कूटनीतिक खेल जोरों पर है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव पारित पर चीन का समर्थन हासिल करते हुए उसे पारित करवा कर पाकिस्तान को पहले बैकफुट पर धकेल दिया. इसके बाद हवाई हमले पर भी अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया. यहां भी चीन भारत का खुल कर विरोध और पाकिस्तान का खुल कर समर्थन नहीं कर सका. इस हमले के बाद भारतीय कार्रवाई के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को व्यपाक सहयोग मिला. इसमें उल्लेखनीय समर्थन ईरान जैसे देश का है जो इस्लामिक देश होने के बावजूद भारत के समर्थन में आया है.
पहली बार नहीं दे रहा है ईरान भारत का साथ
यह कोई पहली बार नहीं है कि ईरान भारत का साथ दे रहा है. इसकी दो वजह हैं. पहली भारत और ईरान के वाणिज्यिक संबंध और दूसरी ईरान और पाकिस्तान के बिगड़े रिश्ते. भारत लंबे समय से ईरान से पेट्रोलियम का आयात करता आ रहा है. 2018 में भारत के आयातित पेट्रोलियम में दूसरा स्थान ईरान का था. वहीं भारत भी ईरान से तेल खरीदने वाले देशों में प्रमुख देशों में से एक रहा है. पाकिस्तान से ईरान के संबंध का प्रमुख कारण ईरान विरोधी ताकतों को समर्थन देना रहा है. पाकिस्तान ने सुन्नी समर्थित तालिबान को समर्थन देना ईरान को बहुत अखरा जिसकी वजह से शिया बहुल ईरान की पाकिस्तान से दूरियां बढ़ती गईं. इसके अलावा पाकिस्तान का हमेशा ही सुन्नी इस्लाम समर्थित देशों को सहयोग ईरान से दूर करता गया.
ईरान पाकिस्तान के खराब नहीं थे पहले रिश्ते
दरअसल ईरान और पाकिस्तान के पहले रिश्ते मजबूत थे. ईरान पहला इस्लामिक देश था जिसने पाकिस्तान को मान्यता दी थी. लेकिन दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास तब आई जब पाकिस्तानी शिया समुदाय ने यह शिकायत करते हुए कहा कि पाकिस्तान के इस्लामीकरण के कार्यक्रम के चलते उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है. इसके पहले शीत युद्ध में दोनों देश अमेरिका के सहयोगी रहे थे.
1979 में ईरान इस्लामिक क्रांति के बाद समीकरण पलट गए. ईरान अमेरिका का घुर विरोधी हो गया. जबकि पाकिस्तान शीत युद्ध में अमेरिका का प्रमुख सहयोगी बना रहा. इसके बावजूद दोनों देशों के बीच रिश्तों में तल्खी नहीं आई थी. पाकिस्तान ईरान-इराक युद्ध में तटस्थ ही रहा. बावजूद इसके कि उसका सहयोगी अमेरिका इराक की मदद कर रहा था. इसके अलावा सोवियत संघ भी इराक के साथ था वहीं पाकिस्तान और ईरान अफगानी मुजाहिद्दीनों के साथ थे.
1990 के दशक में आई रिश्तों में तल्खी
1990 के दशक में जब पाकिस्तान ने तालिबान का समर्थन किया तभी से पाकिस्तान और ईरान के बीच दूरियां बढ़ती गई. ऐसे में भारत भी ईरान के नजदीक आने लगा. अमेरिका अफगानिस्तान में दखल हो गया. 2001 के बाद अमेरिका ने जब तालिबाद के खिलाफ अफगानिस्तान में कार्रवाई की तो ईरान ने इसका स्वागत तो किया लेकिन इससे वह चारों ओर अमेरिका से घिर गया. अब अमेरिका की इराक अफगानिस्तान, फारस की खाड़ी तक में घुसपैठ हो गई. हालांकि इस बीच पाकिस्तान के साथ ईरान के रिश्ते सौहार्दपूर्ण नहीं तो तनावपूर्ण भी नहीं थे. दोनों देशों में संबंध मजबूत करने का कोशिशें भी जारी रहीं.
कश्मीर पर ईरान
ईरान लंबे समय तक कश्मीर मामले में वहां के लोगों को संघर्ष करने की हिमायत करता रहा है. अयोतुल्लाह खामेनेई ने 2010 में दुनिया भर में मुस्लिमों को कश्मीर का समर्थन देने की अपील की थी. ऐसा ही कुछ उन्होंने 2017 में भी कहा था. इसके बावजूद ईरान ने भारत के खिलाफ कभी भी खुल कर पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया. इस मामले में उसने बीच का रास्ता ही अपनाया है हालांकि कई बार उसने ऐसा जताया भी कि भारत उसके हितों में बाधक है, लेकिन भारत ने हाल ही में ईरान के नजरिए में बदलाव करने की कोशिश भी की है.
क्या अब ईरान का नजरिया बदल गया है
यकीनन, लेकिन इसका मतलह यह नहीं कि भारत से ईरान के संबंध पहले खराब थे. ईरान केवल कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ नहीं दे रहा था. इसमें भी ईरान के रुख में अब बदलाव देखने को मिल रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है ईरान का दुनिया भर में अलग और अकेला पड़ना. अमेरिका के बाद ईरान का यूरोप में भी विरोध बढ़ रहा है. ऐसे में भारत के साथ उसका तेल निर्यात कायम रहना उसके लिए बहुत जरूरी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परमाणु समझौता रद्द करने के बाद ईरान के व्यापारिक हितों को गहरा झटका लगा है. ऐसे में अगर भारत से भी उसका व्यापार प्रभावित होता है तो उसके लिए संभलना बहुत मुशकिल हो जाएगा. यही वजह है कि पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान को ईरान की भी आलोचना झेलनी पड़ी. इसके अलावा पाकिस्तान में आतंकवाद की जडें, ईरान को भी परेशान कर रही हैं, जिससे ईरान पाकिस्तान से पहलेसे ही खुश नहीं है. हाल ही में ईरान ने पाकिस्तान को आतंकवादी समर्थन देने के मालमें में फटकार लगाई, जब पिछले महीने ही पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश उल-अद्ल ने ईरान में सैन्य ठिकानों पर हुए हमलों की जिम्मेदारी ली थी जिसमें 27 आईआरजीसी सदस्यों की मौत हो गई थी. तब ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने पाकिस्तान को जमकर लताड़ा था.
अब आगे क्या?
ईरान की पाकिस्तान से बढ़ती दूरी और भारत से बढ़ती नजदीकी लंबे तक जाने वाली है इतना तय है. ईरान के सुरक्षा और व्यापारिक हितों की वजह वह भारत के साथ आने को मजबूर है, लेकिन भारत की लंबे समय से कूटनीतिक प्रयासों का नतीजा यही होगा ईरान और भारत के संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहे और वह भी बिना किसी मजबूरी के. ईरान और भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर परस्परता बहुत गहरी है. भारत को अपने कूटनीतिक प्रयास ईरान के साथ कायम करने की कोशिश जारी रखनी होंगी.