अयोध्या मामले में मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आज सुबह 10.30 बजे सुनवाई शुरू हुई

अयोध्या मामले में मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आज सुबह 10.30 बजे सुनवाई शुरू हुई. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर बुधवार को सुनवाई की थी.

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– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  4 सप्ताह में पक्षकारों के बीच मध्यस्थता कर विवाद का निपटारा करे।

– मध्यस्थता पैनल में जस्टिस   कलीफुल्ला , श्री राम पंचू,श्री श्री रवि शंकर व  को शामिल किया गया है।

– कोर्ट ने कहा कि विवाद निपटारे के दौरान मध्यस्थता प्रयासों पर मीडिया रिपोर्टिंग नहीं होगी।

– सभी पक्षकार आपसी समझौते से हल निकालेः सुप्रीम कोर्ट

– हिंदू महासभा ने  कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी को मानना चाहिए

– रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने कहा कि मस्जिद बदली जा सकती है, राम मंदिर नहीं

– रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर ही बनेगा

– रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने कहा कि मध्यस्थता पहले भी हो चुकी है

– हिंदू महासभा के वकील विष्णु जैन ने कहा, सभी पक्ष राजी हो तो मध्यस्थता को राजी

– हिंदू महासभा ने आज कहा कि मध्यस्थता से सभी मामले हल हो सकते है

बता दें कि इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट दोनों ही पक्षों से मामले के बातचीत के जरिए हल निकालने को लेकर मध्यस्थता पर फैसला सुरक्षित रखा लिया था. हिंदू पक्षकारों में रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने मध्यस्थता से इनकार किया था.  वहीं एक और हिंदू पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने कहा था कि वह मध्यस्थता के लिए तैयार है. मुस्लिम पक्ष ने भी मध्यस्थता पर सहमति जताई.सुनवाई के दौरान सबसे पहले एक हिन्दू पक्ष के वकील ने कहा था कि अयोध्या केस को मध्यस्थता के लिए भेजने से पहले पब्लिक नोटिस जारी किया जाना चाहिए. हिंदू पक्षकार की दलील थी अयोध्या मामला धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है, यह केवल सम्पत्ति विवाद नहीं है. इसलिए मध्यस्थता का सवाल ही नहीं है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम हैरान हैं कि विकल्प आज़माए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है लेकिन हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे की नहीं सोचता. बस विकल्प आज़माना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम ये नहीं सोच रहे कि किसी पक्ष को किसी चीज का त्याग करना पड़ेगा. हम जानते हैं कि ये आस्था का मसला है. हम इसके असर के बारे में जानते हैं.’ 

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