चुनावी गठबंधन को लेकर डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय ने दिया बड़ा बयान, कहा- सपा और बसपा में दम नहीं, प्रियंका अप्रासंगिक
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से निकले भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय राज्य और केंद्र सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। इस बार वह कठिन परीक्षा की कसौटी पर हैं। उनके सामने अपनी ही पार्टी का पिछला रिकॉर्ड तोडऩे की चुनौती है। चुनौती कांग्रेस के प्रियंका कार्ड और सपा-बसपा गठबंधन ने बढ़ाई है पर, डॉ. पांडेय आत्मविश्वास से भरे हैं। वह ताल ठोंककर कहते हैं कि आधी-आधी सीटें छोड़ चुकी सपा-बसपा भला हमसे क्या लड़ेंगी।
प्रस्तुत है चुनावी तैयारी को लेकर उनसे बातचीत के प्रमुख अंश–
उत्तर प्रदेश मे 74 सीटें जीतने का भाजपा का लक्ष्य कैसे पूरा होगा?
मोदी सरकार ने गरीब कल्याण और विकास की सार्थक बुनियाद रखी है। 2014 में जो मतदाता हमारे साथ नहीं आए थे, वे भी सरकारी योजनाओं से लाभान्वित हुए। अन्य दलों ने सिर्फ वोट के लिए उनका इस्तेमाल किया जबकि भाजपा ने उनका जीवन बदला।
यह लक्ष्य सिर्फ मोदी के दम पर पूरा होगा या राज्य सरकार की भी कोई भूमिका रहेगी?
मोदी सरकार ने तो इतिहास रचा ही है। राज्य सरकार भी कानून-व्यवस्था और विकास योजनाओं के माध्यम से कारगर सहायक बनी है।
विपक्ष का आरोप है कि सेना और पाकिस्तान के बहाने भाजपा मतदाताओं का धु्रवीकरण कर रही है?
देखिए! पाकिस्तान 1989 से ही छद्मयुद्ध कर रहा है। कारगिल में अटल सरकार ने उसे करारा जवाब दिया। देश देख रहा है कि मोदी की अगुवाई में पाकिस्तान का पहली बार कड़ा इलाज हो रहा है। सेना ने तीन बार आतंकियों के गढ़ में घुसकर उरी और पुलवामा का करारा जवाब दिया। म्यांमार में भी घुसकर हमारी सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की। मोदी ने देश का गौरव बढ़ाया है और जाहिर है विपक्ष विचलित है।
भाजपा के सांसद-विधायक आपस में जूतम-पैजार कर रहे हैं। संतकबीरनगर, सीतापुर समेत कई घटनाएं हैं?
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में सांसदों और विधायकों का बड़ा स्वरूप है। एक-दो घटनाएं जरूर हुई हैं लेकिन, इसका कड़ाई से संज्ञान लिया गया। इसमें भी बड़ी कार्रवाई होगी।
आप अनुशासन की बात कर रहे हैं लेकिन, पिछले डेढ़ वर्ष से आपका एक सहयोगी दल सरकार की नाक में दम किए रहा?
दोनों सहयोगी दल हमारे साथ मजबूती से हैं। उनके मुद्दों का समाधान भी कर दिया गया है। कभी-कभी सहयोगी दल अपना विषय बढ़कर रखते हैं लेकिन, हमारी पार्टी का मूल नारा सबका साथ-सबका विकास है।
लेकिन मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने जिस तरह अपनी ही सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए?
मतदाता सब समझता है। वह उत्साह के साथ मोदी को फिर प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी में है।
भाजपा ने जातीय सम्मेलन किए। वोट की राजनीति के लिए इसे जातीय गोलबंदी क्यों न कहा जाए?
हमने जितने भी सामाजिक सम्मेलन किए, उसमें उन लोगों को आमंत्रित किया गया जिन्होंने 2014 और 2017 में सरकार बनाई। जातीय सम्मेलनों के पीछे राजनीतिक उद्देश्य नहीं बल्कि सबको सम्मान देना था।
उत्तर प्रदेश के कितने सांसदों का टिकट काट रहे हैं?
सभी सांसदों ने पूरी जिम्मेदारी से जनता की सेवा की है। फिर भी कोई विषय आएगा तो निचली इकाई के प्रस्तावों की समीक्षा की जाएगी। टिकट तो केंद्रीय बोर्ड को तय करना है।
भाजपा की कमजोरी क्या है?
आपके सवाल को मैं कमजोरी नहीं बल्कि कठिनाई के रूप में लेता हूं। हमारे पास कार्यकर्ताओं की बड़ी श्रृंखला है। सबकी अपेक्षाएं हैं। कुछ बड़ी अपेक्षाएं हैं। सबके समायोजन में कठिनाई तो है लेकिन, कार्यकर्ता समझदार हैं और धैर्यवान भी।
उत्तर प्रदेश का मतदाता भाजपा को ही वोट क्यों दे?
उत्तर प्रदेश हमेशा राजनीति का केंद्रीय धुरी रहा लेकिन, 2002 के बाद से सपा-बसपा सरकारों ने इसे बदनाम किया। मोदी-शाह युग में फिर से भारतीय राजनीति में प्रदेश का मान बढ़ा है। प्रधानमंत्री समेत दर्जनभर से ज्यादा केंद्र में मंत्री हैं। मोदी अपनी हर बड़ी योजना की शुरुआत यहीं से करते हैं। पूरी दुनिया में उत्तर प्रदेश की पहचान बदली है।
प्रियंका गांधी के सीधे मोर्चा संभालने से भाजपा को कितना नुकसान है?
प्रियंका तो हर चुनाव में आती हैं। हां, इस बार कांग्रेस ने उनका बाजा अधिक ही बजा दिया पर प्रियंका की धुन नहीं सुनाई पड़ रही। उप्र की राजनीति में प्रियंका अप्रासंगिक हैं।
आपके उम्मीदवार अभी तक तय नहीं हुए लेकिन, कांग्रेस ने सूची जारी करनी शुरू कर दी है?
उनकी पहली सूची में वही नेता हैं, जो थके हुए हैं और जिन्हें अपने इलाके का भूगोल भी भूल गया है।
सपा-बसपा गठबंधन से क्या खतरा है?
गठबंधन जातीय समीकरणों पर ही गुणा-भाग कर रहा है लेकिन, दोनों के बीच घोर अन्तर्विरोध है। प्रदेश में आधा-आधा इलाका सपा-बसपा के बीच खाली पड़ा है। नया वोटर जातीय समीकरण से उठकर आगे बढ़ा है। नवमतदाता किसी दल के नहीं बल्कि देशहित को ध्यान में रखकर वोट करने के लिए तैयार है।
उपचुनावों की हार को आप कैसे देखते हैं?
हम गोरखपुर और फूलपुर बहुत कम मतों से हारे। यह अति आत्मविश्वास से हुआ और हमारे अपने मतदाता वोट डालने कम गए। कैराना हमारी कठिन सीट थी, फिर भी हम जीत की दहलीज तक गए। 2014 के बाद विधानसभा उप चुनाव हुए तो हम ज्यादातर सीटें हार गए थे लेकिन, 2017 में हमें रिकॉर्ड बहुमत मिला।