शीतला सप्तमी की पौराणिक कथा और महत्व

आप सभी को बता दें कि कल यानी 27 मार्च को शीतला सप्तमी है. ऐसे में इस दिन बहुत से भक्त माँ की पूजा करते हैं और आरती भी. ऐसे में शीतला सप्तमी की कथा सुनने से बहुत बड़ा लाभ होता है. जानिए कथा के बारे में की वह किस प्रकार है. आइए जानते हैं.

कथा – किसी गांव में एक महिला रहती थी. वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी. उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था. एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई. उस आग में गांव की सभी झोपडिय़ां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही. सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं. इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है. यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे.

शीतला सप्तमी का महत्व- आप सभी को बता दें कि शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं तथा जो यह व्रत करता है, उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं हो सकते हैं. इसी के साथ इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं और दूसरे दिन इनका भोग शीतला माता को लगाया जाता है. कहते हैं इस व्रत को बसोरा भी कहा जाता है और मान्यता है कि इस दिन घरों में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता यानी सभी को एक दिन बासी भोजन ही करना पड़ता है और माता को भी बसी भोजन चढ़ाया जाता है.

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