पूर्वांचल की सियासत गरम है, कमोबेश 25 सीटें दांव पर हों तो कौन राजनीतिक दल पीछे रहना चाहेगा, जानिए
आखिर इसी इलाके में तो प्रधानमंत्री की वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ मानी जाने वाली गोरखपुर की सीटें आती हैं। बनारस का राजनीतिक मिजाज महज इस चर्चा से ही गर्मा रहा है कि यहां पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस से प्रियंका वाड्रा मैदान में उतर सकती हैं।
ऐसा हुआ तो यह देश का सबसे बड़ा चुनावी मुकाबला होगा। पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर राजग और सपा–बसपा-रालोद गठबंधन के बीच टक्कर है। भाजपा के नेतृत्व वाले राजग में साझेदार सुभासपा के अध्यक्ष और योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कुछ मुश्किल बढ़ा दी है और बागी तेवर अख्तियार करते हुए 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं।
2014 में वाराणसी के रास्ते पहली बार संसद की दहलीज पर पहुंच कर माथा टेकने वाले नरेंद्र मोदीजब प्रधानमंत्री बने तो अपने संसदीय क्षेत्र को वक्त दिया और सौगातें भी दीं। बनारस में 22 अप्रैल को नामांकन शुरू हो जाएगा, लेकिन अब भी मोदी के मुकाबले किसी दल ने उम्मीदवार नहीं उतारा है। इसे किसी रणनीति का हिस्सा कम, मुकाबले के लिए प्रत्याशी का न मिल पाना ज्यादा माना जा रहा है। कांग्रेस की एक रिसर्च टीम वाराणसी पहुंच कर होमवर्क कर चुकी है। लोग इसका आकलन कर रहे हैं कि प्रियंका अगर मोदी के खिलाफ उतरती हैं तो कितना असर डाल सकेंगी।
हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है कि नतीजे चौकाने वाले हों। उपचुनाव में हार का सामना कर चुकी भाजपा ने गोरखपुर सदर सीट पर भोजपुरी फिल्म स्टार रवि किशन को मैदान में उतारा है, जबकि गठबंधन की तरफ से राम भुवाल निषाद प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने इस सीट पर भी अभी अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। वर्तमान में इस सीट पर सपा से प्रवीण निषाद सांसद हैं, जो इस बार भाजपा के टिकट पर संतकबीरनगर से प्रत्याशी हैं। माना यह जा रहा है संगठन में स्थानीय स्तर पर जबरदस्त गुटबाजी को बाईपास करने के लिए नेतृत्व ने बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। खुद को मामखोर शुक्ला और मूलरूप से गोरखपुर का वाशिंदा बताने वाले रवि किशन की राह आसान नहीं होगी। जाहिर है इस सीट को भाजपा की झोली में समेटना योगी आदित्यनाथ के लिए भी कड़ी चुनौती होगी। गोरखपुर के लोगों का कहना है कि उपचुनाव में हुई हार के बाद किरकिरी झेल चुकी भाजपा ने इस बार कुछ होमवर्क करके ही रवि किशन को मैदान में उतारा होगा।
कुछ और सीटें हैं जहां भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर होगी, मसलन-गाजीपुर और चंदौली। रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा गाजीपुर से फिर किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन बसपा ने रणनीति में बदलाव करते हुए अफजाल अंसारी को मैदान में उतार दिया है। जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल ने 2004 के चुनाव में बतौर सपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा को 2.26 लाख मतों से पराजित किया था। इस बार भी मनोज सिन्हा की राह कठिन नजर आ रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय चंदौली से मैदान में हैं। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के गृह जनपद होने के बाद भी डॉ. पांडेय की राह आसान नहीं है।
प्रयागराज संसदीय सीट से भाजपा ने योगी सरकार में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी को प्रत्याशी बनाया। कुंभ में चकाचक हुए प्रयागराज में विकास सबसे बड़ा फैक्टर होगा। फिलहाल यहां गठबंधन या कांग्रेस का कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं है। 2014 में सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव को संसद में भेजने वाले आजमगढ़ से इस बार सपा प्रमुख अखिलेश चुनाव मैदान में है। भाजपा ने यहां से भोजपुरी स्टार दिनेशलाल यादव उर्फ निरहुआ को मैदान में उतारा है और उन्हें जैसा रिस्पांस मिल रहा है, उससे आजमगढ़ में रोचक मुकाबले की आशा की जा सकती है