दिल के चार मरीजों का लाइव ऑपरेशन हुआ पीजीआई में

पीजीआई में शनिवार को इंट्रा वेस्कुलर अल्ट्रासाउंड की मदद से जापानी डॉक्टरों द्वारा चार दिल के मरीजों की लाइव सर्जरी की गई। नस का ब्लॉकेज खोला गया। डॉक्टरों का दावा है कि सभी सर्जरी सफल हुई हैं। मरीजों को छुट्टी दे दी गई। संस्थान की लाइब्रेरी में चल रही 7 वीं इण्डो जापान क्रॉनिक टोटल क्लूजन क्लब कांफ्रेंस के दूसरे दिन इस नई तकनीक द्वारा अलग-अलग की गई 9 सर्जरी का लाइव प्रसारण किया गया।

कांफ्रेंस में मौजूद डॉक्टरों ने लाइव सर्जरी देखी और विशेषज्ञों ने उन्हें जापानी तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी भी दी।

इनकी सर्जरी हुई : कांफ्रेंस के अध्यक्ष और पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पीके गोयल ने बताया कि कांफ्रेंस में कुल नौ मरीजों की सर्जरी का लाइव प्रसारण किया गया। इसमें चार मरीजों की सर्जरी पीजीआई में की गई। यह सभी मरीज 50 साल से अधिक उम्र के थे। इनमें 70 वर्षीय मरीज लल्लन प्रसाद भी है।

इनमें पांच मरीजों की सर्जरी हैदराबाद और मुम्बई में की गई। इन मरीजों की नस तीन माह से पूरी ब्लॉक थी। डॉक्टरों को तकनीक के बारे में बताया कि ताकि देश में इस तकनीक का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा दिल के मरीजों में हो।

यह तकनीक बुजुर्गों के लिए बहुत सुरक्षित 

कांफ्रेंस की सचिव व पीजीआई कार्डियोलॉजी विभाग की डॉ. रुपाली खन्ना ने बताया कि यह सर्जरी उम्रदराज दिल के मरीजों के लिय बहुत सुरक्षित है। जापानी तकनीक क्रॉनिक टोटल ऑक्लूजन (सीटीओ) अधिक कारगर है।

क्योंकि बुजुर्ग लोगों में अमूमन बीपी, डायबिटीज के साथ ही कई तरह की दिक्कतें होती हैं। ऐसे मरीजों में बाइपास सर्जरी करने में जोखिम ज्यादा होता है। लिहाजा बुजुर्गों की नस पूरी ब्लॉक होने पर सीटीओ तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

देश में 2000 सर्जरी हो चुकी हैं

संस्थान के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुदीप कुमार बताते हैं कि इस सर्जरी से डॉक्टरों पर दबाव कम होता है। क्योंकि इस सर्जरी में मरीज को अस्पताल में सिर्फ एक दिन दो दिन रोका जाता है, जबकि सीने खोलकर ऑपरेशन करने में मरीज को पांच दिन से एक हफ्ते तक अस्पताल में रोका जाता है। इससे मरीजों की लम्बी वेंटिंग हो जाती है।

यह तकनीक हर उम्र के लोगों में प्रयोग की जाती है लेकिन खासकर 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में कई तरह की तकलीफ होने की वजह से तकनीक ज्यादा सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि आज इस तकनीक का जापान में सफलतम इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि पूरी तरह सुरक्षित है। 

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