श्रद्धालुओं और सैलानियों की अनदेखी से मैली हो रही गंगा की निर्मल धारा
जीवनदायिनी गंगा की धारा निर्मल अविरल बहे, इसके लिए सरकार ने तो जिम्मेदारी उठा ली है, लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या सिर्फ सरकारी प्रयास ही काफी होंगे। गंगा को साफ-सुथरा बनाने के लिए आमजन के साथ ही श्रद्धालुओं व सैलानियों को भी जिम्मेदारी समझनी होगी। गंगा की निर्मल धारा के मैली होने के पीछे अनदेखी भी एक बड़ी वजह है। इसी मोर्चे पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
बात समझने की है कि गंगा स्वच्छता के लिए सरकारी प्रयासों को आमजन का साथ मिलेगा तो वह दिन दूर नहीं, जब गंगा एकदम निर्मल हो जाएगी।
सदियों से अविरल बहने वाली गंगा के अस्तित्व पर आज मानवीय भूलों की वजह से संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सिर्फ ग्लोबल वार्मिंग ही नहीं, बल्कि यह नदी बढ़ती जनसंख्या और कई तरह के प्रदूषण का बोझ भी झेल रही है।
भारतीय सभ्यता की जननी गंगा के साथ हम ये कैसा व्यवहार कर रहे हैं। इस पर गंभीरता से चिंतन-मनन की जरूरत है। आइये, नजर डालते हैं किस प्रकार प्रदूषित हो रही जीवनदायिनी गंगा।
पूजन सामग्री का प्रदूषण
गंगा की शरण में लोग विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। अनुष्ठान के बाद पूजन सामग्री, फूल, पुरानी मूर्तियां समेत अन्य सामग्री गंगा में बहा दी जाती हैं। ये सामग्री कई टन तक पहुंच जाती है और गंगा के जल को प्रभावित करती है। यही नहीं, कई मौकों पर अधजले शव भी गंगा में प्रवाहित कर दिए जाते हैं।
होटल, आश्रम-धर्मशालाओं से होने वाला प्रदूषण
उत्तराखंड में भी गंगा किनारे बसे शहरों, कस्बों में सैकड़ों की संख्या में होटल, आश्रम व धर्मशालाएं हैं। रोजाना ही इनसे निकलने वाला कचरा और सीवेज सीधे गंगा में समाहित हो उसे मैला कर रहा है। यह एक बड़ी चिंता की वजह है।
कृषि जनित प्रदूषण
कृषि में पैदावार बढ़ाने को जिस तरह रासायनिक उर्वरकों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है, उसने भी गंगा के पानी को दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बारिश के दौरान खेती में प्रयोग किए गए ये रसायन पानी के साथ गंगा के जल में आ मिलते हैं।
औद्योगिक प्रदूषण
उद्योगों से निकलने वाला हानिकारक रसायन वाला पानी भी गंगा में जा रहा है। इससे गंगा नदी का इको सिस्टम प्रभावित हो रहा है। उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल के कारण गंगा में पलने वाले जलीय जंतुओं पर खतरा मंडरा रहा है। ये भी एक बड़ी चिंता का विषय है।
आम नागरिक का दायित्व
गंगा हम सबकी है और इसे स्वच्छ और निर्मल बनाने का दायित्व भी हम सबका है। जाने-अनजाने में हम जो गलतियां कर रहे हैं, उनसे बचना होगा और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना होगा। मसलन, गंगा के जल में साबुन का इस्तेमाल न हो, पूजन सामग्री को उसमें न बहाएं, शवों को पानी में न बहाएं, गंगा घाटों को साफ-सुथरा बनाने में सहयोग दें, गंगा की निर्मलता के लिए चल रही नमामि गंगे परियोजना के तहत हो रहे कार्यों में सहभागिता निभाएं।
गंगा में गिर रही गांवों की गंदगी
गंगा स्वच्छता के दावे कागजों तक ही सीमित हैं। सरकार और उसके नुमाइंदे गंगा की सफाई का दावा तो करते हैं, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं होता। गोमुख से निकलने वाली गंगा (भागीरथी) नदी किनारे बसे गांवों में सीवर ट्रीटमेंट न होने से हर दिन गंदा पानी गंगा में गिर रहा है। उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ से टिहरी झील तक गांवों के गंदे पानी के कारण गंगा लगातार दूषित हो रही है।
गंगा को साफ रखने के लिए दैनिक जागरण के निर्मल गंगा अभियान के तहत चिन्यालीसौड़ से टिहरी झील तक के गांवों की हकीकत जानी गई। चिन्यालीसौड़ और टिहरी झील कोटी कॉलोनी के बीच लगभग 34 गांव और कस्बे पड़ते हैं। इन सभी गांव और कस्बों से हर दिन गंदा पानी और कचरा निकलता है, लेकिन उसके निस्तारण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
इन क्षेत्रों से निकलने वाली गंदगी सीधी नदी और टिहरी झील में गिर रही है। कोटी कॉलोनी में भी टिहरी झील के पर्यटन स्थल बनने के कारण पर्यटकों की आवाजाही शुरू हुई है, लेकिन वहां पर भी कचरे के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है।
हर दिन गंदगी से टिहरी झील दूषित हो रही है। इस बीच, कंडीसौड़, डोबरा, भल्डयाणा, उप्पू और कोटी जैसे कस्बे भी बीच में पड़ते हैं, जहां ज्यादा आबादी होने के कारण ज्यादा गंदगी निकलती है। टिहरी झील किनारे भी गंदगी का ढेर हर दिन लगा रहता है। पॉलीथिन सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है।
इस संबंध में एसडीएम कंडीसौड़ रविंद्र जुवांठा का कहना है कि गंगा एक्शन प्लान के तहत यहां पर सीवर और कचरा गंगा में न गिरे, इसके लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है।