मायावती खुद विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत सकतीं, दम है तो लड़कर दिखाएंः डॉ. निर्मल

लखनऊ. मायावती पूरे देश में कहीं से भी विधानसभा तक का चुनाव नहीं जीत सकती हैं। मायावती खुद को दलितों की देवी कहती हैं। यदि वह देवी की तरह ही पूजी जाती हैं और उनको भ्रम है कि उनका जनाधार हाथी की तरह ही बड़ा हैतो उनको पूरे देश से कही से भी उपचुनाव लड़कर अपनी हैसियत जान लेनी चाहिए। हकीकत तो ये है कि पूरे प्रदेश में होने वाले आगामी उपचुनाव में 11 सीटें खाली हुई हैं। मायावती खुद किसी भी सीट से विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत सकती हैं। एक राष्ट्र एक चुनाव से मायावती का व्यापार बंद हो जाएगाइस लिए मायावती इसका विरोध कर रही हैं। ये बातें उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम के चेयरमैन एवं प्रदेश सरकार के मंत्री डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने प्रेसवार्ता के दौरान कही है।

 

 डॉ. निर्मल ने आगे कहा कि मायावती को अब इतिहास में जनता दफन कर देगी। उनका राजनीतिक छल अब नहीं चलने वाला है। लोकसभा चुनाव में मायावती ने टिकटों का व्यापार किया हैलेकिन अब विधानसभा उपचुनाव में उनकी पार्टी से चुनाव लड़ने वाला नहीं मिल रहा है। मायावती ने दलितों को गुमराह किया है। आज ऐसे हालात हैं कि मायावती किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। ऐसे में पहले वह संवैधानिक तौर पर किसी सदन की सदस्य बनें तब राजनीति करें। यदि मायावती में दम है तो विधानसभा उप चुनाव लड़कर दिखाएं। जनता अब मायावती को चुनाव जिताएगी नहींबल्कि हराएगी।

 

 मायावती दलित विरोध की राजनीति करती हैं और दलितों का ही वोट चाहती हैं। मायावती ने ही अनुसूचित जाति आयोग और उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम में दलित अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था। उन्होंने अनुसूचित जाति एक्ट को भी निष्प्रभावी कर दिया। उनके पास दलितों के लिए कोई एजेंडा नहीं है। मिड डे मील में दलित रसोइए की नियुक्ति की अनिवार्यता को मायावती ने ही समाप्त कर दिया था।

 प्रोन्नति में आरक्षण मायावती की उदासीनता की वजह से ही समाप्त हुआ। वर्ष 2006 में एम नागराज केस में सुप्रीमकोर्ट का फैसला आया कि प्रतिनिधित्व की अपर्याप्ततादक्षता की स्थितिपिछड़ेपन की स्थिति देखने के बाद प्रोन्नति में आरक्षण और परिणामी ज्येष्ठता के नियम बनाए जाएंगे। किन्तु वर्ष 2007 में परिणामी ज्येष्ठता के नियम बनाते समय आंकड़े एकत्र नहीं किए गए। ज्येष्ठता नियमावली 2007 बनाई गईजिसके कारण परिणामी ज्येष्ठता नियमावली और प्रोन्नति में आरक्षण न्यायालय ने समाप्त कर दिया।

Related Articles

Back to top button