सियासी सफर में हाथ थामती-छिटकती रहीं हैं मायावती,
लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरी बुआ-भतीजे की जोड़ी सोमवार को अधिकृत रूप से बिखर गई। महज साढ़े पांच माह में ही बसपा-सपा गठबंधन का टूटना राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए चर्चा का विषय जरूर है, लेकिन बसपा प्रमुख मायावती के सियासी सफर से वाकिफ किसी शख्स के लिए यह चौंकाने वाला नहीं है।
- 1993 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बसपा मुखिया कांशीराम ने पहली बार गठबंधन किया। बसपा को दोस्ती का लाभ हुआ और 1989 की तुलना में सीटें 13 से बढ़कर 65 हो गईं।
- 1995 में लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा-बसपा का राजनीतिक रिश्ता टूट गया। भाजपा ने बसपा को बाहर से समर्थन दिया तो इसी वर्ष पहली बार मायावती मुख्यमंत्री बनीं।
- 1996 में दलित और सवर्ण समीकरण साधने के लिए मायावती भाजपा छोड़कर कांग्रेस के साथ खड़ी हो गईं। लिहाजा, सीटें 65 से बढ़कर 68 हो गईं।
- 1997 में भाजपा के साथ फिर गठबंधन किया और उन्होंने सरकार बनाई। मायावती दूसरी बार मुख्यमंत्री की गद्दी पर आसीन हुईं।
- 2002 में भी भाजपा के समर्थन से ही बसपा को ताकत मिली। इस बार बसपा को विधानसभा चुनाव में 101 सीटों पर जीत मिलीं। बसपा मुखिया तीसरी बार सीएम बनीं। फिर लगभग एक साल चार माह बाद गठबंधन टूट गया।
- 2007 में वह अकेले चुनाव लड़ीं और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाकर चौथी बार बतौर मुख्यमंत्री उनकी ताजपोशी हुई।
अखिलेश के मौन से बढ़ रही सपा की चुनौती
गठबंधन तोड़ने के बाद आक्रामक दिख रहीं मायावती के आरोपों पर अखिलेश यादव द्वारा उचित जवाब न दिए जाने से समाजवादी पार्टी की चुनौती बढ़ेगी। खासतौर से मुस्लिमों को सपा से जोड़े रखना आसान नहीं होगा। साथ ही पार्टी में बगावत होने में खतरे भी बढ़ेंगे। वर्ष 2017 में कांग्रेस से गठबंधन के बाद अब लोकसभा चुनाव में बसपा से गठजोड़ का प्रयोग फेल होने पर भी सपा प्रमुख को अपने कार्यकर्ताओं को सफाई देनी होगी ताकि उनके नेतृत्व पर सवाल न उठ पाए।