कजरी तीज पर जरूर सुने यह व्रत कथा नहीं तो अधूरा रह जाएगा आपका व्रत
आप सभी को बता दें कि कजरी तीज का व्रत इस बार 18 अगस्त को पड़ रहा है और मुख्य रूप सुहागिन महिलाओं का यह व्रत हर साल भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. आपको बता दें कि महिलाएं इस दिन देवी पार्वती के स्वरूप कजरी माता की पूजा करती हैं और पति के लंबी उम्र की कामना करती हैं. आपको बता दें कि इस दिन अविवाहित लड़कियां भी अच्छे वर की कामना लिए इस पर्व को करती हैं. इसी के साथ यह त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में मनाया जाता है और कजरी तीज के मौके पर महिलाएं दिन भर उपवास करती हैं और फिर शाम को चंद्रमा के उदय के बाद उन्हें अर्घ्य देती हैं. इसी के साथ कई क्षेत्रों में इसे कजली तीज भी कहा जाता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कजरी तीज की कथा जिसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है.
कजरी तीज की कथा – कथा के अनुसार एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था. उसकी हालत ऐसी थी कि दो समय के भोजन करने के लिए भी पैसे नहीं होते थे. ऐसे में एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखने का संकल्प लिया और अपने पति से व्रत के लिए चने का सत्तू लाने को कहा. यह बात सुनकर ब्राह्मण परेशान हो गया कि आखिर उसके पास इतने पैसे तो है नहीं, फिर वह सत्तू कहां से लेकर आए. बहरहाल, ब्राह्मण साहुकार की दुकान पर पहुंचा. वहां उसने देखा कि साहुकार सो रहा था. ऐसे में ब्राह्मण चुपके से दुकान में चला गया सत्तू लाने लगा. इतने में साहुकार की नींद खुल गई और उसने ब्राह्मण को देख लिया. उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया और चोर-चोर चिल्लाने लगा.
ब्राह्मण ने तब कहा कि वह चोर नहीं है और केवल सवा किलो सत्तू लेकर जा रहा है. ब्राह्मण ने बताया कि उसकी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत किया है और उसके लिए पूजा सामाग्री चाहिए. इसलिए उसने केवल सत्तू लिया है. यह सुनकर साहुकार ने ब्राह्मण की तालाशी ली तो उसके पास सही में कुछ नहीं मिला. यह देख साहुकार की आंखें नम हो गई. उसने ब्राह्मण से कहा कि अब से वह उसकी पत्नी को बहन मानेगा. इसके बाद साहुकार ने ब्राह्मण को पैसे और सामान देकर विदा किया. कहते हैं कि इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और पति की आयु लंबी होती है.