आर्मी जनरल अपना कार्यकाल खुद तय करता है, PM बस फाइल पर साइन करता है
आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर हालिया दौर में भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बेहद सर्द हुए हैं. दोनों मुल्कों में तनातनी के बीच पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल क्षेत्रीय सुरक्षा माहौल को देखते हुए तीन साल के लिए बढ़ा दिया गया है. बाजवा 29 नवंबर, 2016 को सेना प्रमुख बने थे और वह ऐसे समय में पद नहीं छोड़ना चाहते जब पाकिस्तान और भारत के संबंध नए निचले स्तर पर पहुंच गए हैं और अमेरिका अफगानिस्तान से हटने की तैयारी कर रहा है. जिससे इस क्षेत्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो रहा है.
इसलिए आधिकारिक घोषणा से पहले ही बाजवा के पद पर बने रहना निर्विवाद रूप से सुनिश्चित था, क्योंकि पाकिस्तान में सेना प्रमुख ही अपने कार्यकाल की अवधि तय करता है. यद्यपि प्रधानमंत्री इमरान खान ने उनका कार्यकाल बढ़ाने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया है. इस तरह से देखा जाए तो सेना प्रमुख ने ही अपने कार्यकाल की अवधि का फैसला किया है.
वैसे भी पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक हालात के संदर्भ में पूरी कमान बाजवा के हाथ में मानी जाती है, क्योंकि इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने में उन्होंने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी. इमरान की इस बात के लिए अनवरत आलोचना हुई है कि वह निर्वाचित नहीं हुए, बल्कि चुने गए.
देश में आंतरिक स्थिति को संभालने के अलावा बाजवा विदेश नीति को चलाने में भी प्रत्यक्ष भूमिका निभा रहे हैं. वह पिछले महीने अमेरिका की निर्णायक यात्रा पर इमरान खान के साथ थे. कहा जाता है कि वह अफगानिस्तान से बाहर निकलने की अमेरिकी योजना में वाशिंगटन के लिए प्रमुख व्यक्ति रहे हैं.
इमरान खान
हालांकि इमरान पूर्ववर्ती सरकारों में इस तरह सैन्य प्रमुखों के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के विरोधी रहे हैं. उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में 2010 में यूसुफ रजा गिलानी के नेतृत्व वाली पीपीपी सरकार द्वारा देश के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी का कार्यकाल बढ़ाए जाने का विरोध किया था, और उन्होंने कानून के शासन का अनुसरण करने पर जोर दिया था.
उस दौरान इमरान खान ने एक समाचार चैनल के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कहा था, “प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध में किसी भी सेना प्रमुख को सेवा विस्तार नहीं मिला था.” उन्होंने कहा था कि किसी एक व्यक्ति के लिए नियम को बदलने से पूरी व्यवस्था कमजोर हुई है.
उल्लेखनीय है कि नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान सेना प्रमुखों को लगभग आधा दर्जन बार बदला था