कान्हा की सुंदर पोशाक बनाते हैं हसीन मियां, काशी की साझी विरासत आज भी जीवंत
मंदिरों और घाटों के लिए दुनिया में मशहूर बनारस बनारसी सड़ियों के लिए भी दुनिया में प्रसिद्ध है। बनारसी साड़ी बिना हिंदू व्यापारी और मुस्लिम कारीगरों के बिना बन ही नहीं सकती है। यहां पर गंगा- जमुनी तहजीब देखने को मिलते है। इसकी एक और मिसाल कृष्ण जन्माष्टामी के त्योहार में भी देखने को मिलती है। इस त्योहार में राधा और कृष्ण जी वस्त्रों को धारण करते हैं। उसका निर्माण चौहाट्टा लाल खां और कोयला बाजार में जैसे मुस्लिम क्षेत्र में मुस्लिम कारीगरों द्वारा किया जाता है। हसीन मियां बताते है कि जरदोजी पर काम करते मुझे काफी समय हो गया है। आने वाली पीढ़ी इस कला को कैसे जिंदा रखेगी मालूम नहीं।
जरदोजी में महीने सुई से कढ़ाई करने पर आंखों पर जोर भी बहुत अधिक पढ़ता है, वहीं मजूदरी भी इतनी नहीं मिलती की घर का खर्च आसानी से चल सके। वहीं मुनव्वर का कहना है कि बनारस में बने ही राधा-कृष्ण के वस्त्र आज भी मथुरा, वृंदावन, मुंबई और दिल्ली में बहुत पसंद किए जाते हैं। बनारस और जयपुर के कुछ व्यापारियों को अधिक लाभ होता है क्योंकि वह उसमें थोड़ा फेर बदल कर ऊंची कीमत में मंदिरों में बेचते हैं। हमें तो वहीं रोजाना के हिसाब से मजदूरी मिलती है।
सजे बाजार, लड्डू गोपाल की मूर्ति 55 रुपये से 10 हजार तक में : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर बाजार सज गए हैं। उनके सिंहासन से लेकर बिस्तर, अंग वस्त्र की कई वैरायटी मार्केट में हैं। उनकी कीमत तय है। लड्डू गोपाल की मूर्ति 55 रुपये से 10 हजार तक में मिल रही है। शहरवासी जमकर खरीदारी कर रहे हैं। बाजार में कन्हैया को सजाने के लिए बाजार में मोतियों ओर नगों से सजी माइकल जैक्सन हैट, चश्मे और चादी की जूतिया हैं। ठाकुरजी को गर्मी से बचाने के लिए छोटे कूलर को लड्डू गोपाल जी के पास रखकर चला सकते है। जन्माष्टमी पर कान्हा के श्रृंगार के साथ झांकी सजाने के लिए दुकानें सजी हैं। मथुरा, वृंदावन, और गोकुलधाम में मिलने वाले श्रृंगार सामग्री व पोशाक अब शहर में भी उपलब्ध है। सोने सा दिखने वाले सिंहासन मखमली अंगवस्त्र से नजर हट नहीं रही है।