आरबीआइ से मिला फंड इकोनॉमी को देगा रफ्तार, इसे कैपिटल एक्सपेंडिचर पर खर्च कर सकती है सरकार
पिछले सप्ताह सरकार द्वारा की गई बड़ी घोषणाओं के बाद अब रिजर्व बैंक से मिले रिकॉर्ड सरप्लस से स्पष्ट हो गया है कि आने वाला समय कुछ बदलाव लाएगा। इकोनॉमी में मंदी की चर्चाओं के बीच इन घटनाओं का सकारात्मक असर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में दिख सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस रकम का कहां इस्तेमाल किया जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार आरबीआइ से मिलने वाली राशि का इस्तेमाल कैपिटल एक्सपेंडिचर खासकर बैंकों के रिकैपिटलाइजेशन, हाउसिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों पर करेगी। ऐसा होने पर इकोनॉमी के अलग-अलग क्षेत्रों में सुस्ती को दूर करने में मदद मिल सकती है।
असल में कैपिटल एक्सपेंडिचर के रूप में खर्च बढ़ाने की जरूरत इसलिए है क्योंकि वित्त वर्ष 2019-20 में अब तक इसकी रफ्तार धीमी रही है। कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स (सीजीए) के अनुसार सरकार ने चालू वित्त वर्ष में करीब 3.36 लाख करोड़ रुपये के कैपिटल एक्सपेंडिचर का लक्ष्य रखा है। लेकिन अप्रैल-जून तिमाही में इसमें से मात्र 63 हजार करोड़ रूपये ही खर्च किए गए हैं, जो बजट के लक्ष्य का मात्र 18.9 फीसद है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कैपिटल एक्सपेंडिचर के रूप में 86,988 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जो उस वर्ष के आम बजट में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लक्ष्य का 29 फीसद था। इस तरह पहली तिमाही में कैपिटल एक्सपेंडिचर में वृद्धि के बजाय लगभग 30 फीसद की कमी आई है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री समीर नारंग का कहना है कि आरबीआइ के ट्रांसफर से सरकार को 2019-20 के लिए तय किए गए कैपिटल एक्सपेंडिचर के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। ब्रोकरेज फर्म एमके की एक रिसर्च रिपोर्ट में भी कहा गया है कि सरकार अगर आरबीआइ से मिली धनराशि का इस्तेमाल खर्च बढ़ाने के लिए करती है तो यह खर्च कंजंप्शन के बजाय इन्फ्रास्ट्रक्चर पर होगा। इससे अल्पावधि में बाजार को मदद मिलनी चाहिए। वहीं बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ग्लोबल की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि सरकार इस धनराशि का इस्तेमाल बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपये के रिकैपिटलाइजेशनके लिए करेगी। ऐसा होने पर ब्याज दरों में कमी आएगी।
डेढ़ साल की कवायद का फल
उल्लेखनीय है कि पिछले एक डेढ़ साल से रिजर्व बैंक से सरप्लस राशि लेने की कवायद हो रही थी। इसे लेकर सरकार और रिजर्व बैंक के बीच काफी तनाव भी बना रहा। रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल और डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार को सरप्लस में से फंड ट्रांसफर करने के विचार का विरोध भी किया था। इसके बाद आचार्य ने अपने पद से इस्तीफा भी दिया था। लेकिन अब रिजर्व बैंक ने जालान समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए रिजर्व बैंक के बोर्ड ने सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने का निर्णय किया है। इसमें 1,23,414 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2018-19 के लिए सरप्लस के रूप में हैं, जबकि 52,637 करोड़ रुपये संशोधित इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क के तहत अतिरिक्त प्रावधान के हैं।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में आरबीआइ से लगभग एक लाख करोड़ रुपये सरप्लस मिलने की उम्मीद जताई थी। वैसे, चालू वित्त वर्ष में सरकार को यह राशि मिलने से अपना फिस्कल डेफिसिट का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी क्योंकि पीएम किसान जैसे सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों पर भारी भरकम खर्च होने राजस्व में अपेक्षित वृद्धि न होने के कारण सरकार को फिस्कल डेफिसिट के लक्ष्य को हासिल करना चुनौतीपूर्ण था।