भारत खुशियों के साथ जुड़ गई दुनिया, विदेश ने इसरो का माना लोहा, मिल रही बधाइयां

स्‍पेस साइंस में भारत ने चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2) के जरिए नया इतिहास रचा। इसको लेकर ISRO को देश के सवा अरब लोगों की शुभकामनाएं और बधाइयां ही नहीं मिल रहीं, बल्कि दुनिया ने भी इसका लोहा माना और बधाइयों का तांता लगा है। इस क्रम में भूटान के प्रधानमंत्री लोटे टीशिंग ने भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दी है। उन्‍होंने कहा, ‘भारतीय वैज्ञानिकों पर गर्व है। चंद्रयान- 2 में आखिरी समय में कुछ चुनौतियां देखी गईं, लेकिन आपने जो साहस और कड़ी मेहनत दिखाई है वह ऐतिहासिक है।

हालांकि, पाकिस्‍तान ने यहां भी दुश्मनी निभाई। उसे भारत की यह कामयाबी नहीं पच रही है। चंद्रयान-2 में पाकिस्‍तान के विज्ञान और तकनीकी मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने अपना नकारात्‍मक बयान देते हुए कहा कि भारत की ससंद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी से एक गरीब राष्‍ट्र के 900 करोड़ रुपये बर्बाद करने के लिए सवाल खड़े करने चाहिए।

बता दें कि शनिवार का दिन देश के स्‍पेस साइंस के लिए ऐतिहासिक रहा। भारत की सवा अरब की आबादी ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें इसरो की चंद्रयान-2 मिशन पर टिकी थी। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने के करीब था… चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ‘विक्रम’ के उतरने की सारी प्रक्रिया भी सामान्य रूप से चल रही थी। कुल 13 मिनट 48 सेकंड तक सब कुछ बिल्‍कुल सटीक और सही सलामत चला। नियंत्रण कक्ष में वैज्ञानिक उत्‍साहित थे, लेकिन आखिरी के डेढ़ मिनट पहले जब लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर ऊपर था तभी लगभग 1:55 बजे उसका इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया। ऐसा नहीं कि केवल भारत को ही सॉफ्ट लैंडिंग कराने में मायूसी हाथ लगी है। इससे पहले इन देशों के प्रयास भी विफल रहे हैं।

38 कोशिशें, 52 फीसदी ही सफल 
अभी तक चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के दुनियाभर से कुल 38 कोशिशें हुई हैं। इनमें से महज 52 फीसदी प्रयास ही सफल रहे हैं। चंद्रमा पर दुनिया के केवल छह देशों या एजेंसियों ने अपने यान भेजे हैं लेकिन कामयाबी केवल तीन को मिल पाई है। चंद्रमा की सतह पर उतरने की पहली कोशिश साल 1959 में अमेरिका और सोवियत रूस द्वारा की गई थी। साल 1958 में ही अगस्‍त से दिसंबर 1968 के बीच दोनों देशों ने आपाधापी में कुल सात लैंडर भेजे, लेकिन इनमें से कोई भी सॉफ्ट लैंडिंग में सफल नहीं हो सका था। अमेरिका ने चार पायनियर ऑर्बिटर जबकि सोवियन संघ की ओर से तीन लूनर इंपैक्‍ट को भेजा गया था। सोवियत संघ ने 1959 से 1976 के बीच लूना प्रोग्राम के तहत कुल 13 कोशिशें की थी।

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