पारिस्थितिकी को केंद्र में रख बने हिमालयी विकास का रोडमैप, पढ़िए पूरी खबर

 जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर हिमालय पर ही पड़ने वाला है। यह अति संवेदनशील क्षेत्र है। ऐसे में जरूरी है कि हिमालय के विकास का रोडमैप की यहां की पारिस्थतिकी को केंद्र में रख तैयार किया जाए। यह कहना है पर्यावरणविद् पद्मश्री डॉ.अनिल प्रकाश जोशी का। वह कहते हैं कि हिमालय ही ऐसा पहाड़ है, जो सीधे करोड़ों लोगों का पालन करता है। ऐसे में उसके महत्व को समझना होगा। ‘दैनिक जागरण’ ने हिमालय दिवस के आलोक में हिमालय से जुड़े विषयों पर डॉ.जोशी से बातचीत की।

  • हिमालय की वर्तमान स्थिति क्या है।
  • हिमालय बहुत अच्छे हालात में नहीं कहा जा सकता। इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि मानसून में हिमालय के हर हिस्से को किसी न किसी रूप में भूस्खलन बाढ़ समेत तमाम तरह की पारिस्थितिकी बदलाव का सामना करना पड़ रहा है। अब हिमालय स्वस्थ नहीं है।
  • सरकारों में हिमालय को लेकर कितनी गंभीरता दिखती है।
  • हम समझ नहीं पा रहे कि यह संवेदनशील संरचना दुनिया में अनोखी है। दुनिया में ऐसा कोई भी पहाड़ नहीं है, जो सबसे ज्यादा लोगों से जुड़ा है। यह जानना जरूरी है कि हिमालय ही ऐसा पहाड़ है, जो सीधे करोड़ों लोगों का पालन करता है। लिहाजा उसके महत्व को समझना चाहिए। सरकारों की इस ओर कितनी गंभीरता है इसे ऐसे समझा जा सकता है कि सरकार इसे एक संसाधन के रूप में अधिक देखती है न कि इसे इसकी संवेदनशीलता से जोड़कर। यही कारण है कि हम इसे वस्तु मानकर चलते है और उसके उपयोग पर अधिक गंभीर रहते हैं न कि उसे बनाने के लिए। वैसे वर्तमान राज्य सरकार ने मिलकर एक मंथन किया है। खास बात ये रही कि इसमें नीति आयोग की भागीदारी कराई गई, तो वित्तमंत्री भी शामिल हुईं। यह सब ग्रीन बोनस के लिए किया गया, ताकि हिमालय की सेवा के एवज में ग्रीन बोनस मिल सके लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि जब हिमालय के हालात गंभीर होंगे तो इसकी सेवाएं भी महत्वपूर्ण नही रहेंगी और फिर हम बड़े हकदार भी नही बन पाएंगे।
  • आपकी नजर में हिमालय के विकास का रोडमैप कैसा होना चाहिए।
  • असल में हिमालय को समझने में हमसे कहीं न कहीं चूक हुई है। हम ही मात्र दुनिया में पर्वतीय श्रृंखला नहीं हैं। चीन व यूरोप ज्यादा पर्वतीय है। पूरी दुनिया इनसे सीखने की कोशिश करती है। इन्होंने विकास और पारिस्थितिकी के मध्य सामंजस्य बनाने की कोशिश की है। यह हमारे बीच से नदारद है। पिछले दशक लगातार हिमालय में हो रहे बाढ़ व भूस्खलन हमारी विकासशैली की नासमझी ही है। हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर हिमालय पर ही पड़ने वाला है, क्योंकि यह अति संवेदनदशील क्षेत्र है। यहां का रोडमैप यहां की पारिस्थितिकी को केंद्र में रखकर बनना चाहिए।
  • केंद्र सरकार का हिमालय के प्रति क्या दायित्व है।
  • मैं समझता हूं कि केंद्र का ही सबसे बड़ा दायित्व है, क्योंकि हिमालय कई राज्यों में फैला है। दूसरी बात हिमालय के 90 फीसद संसाधनों का लाभ देश उठाता है। हवा, मिटटी, पानी व प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा हिस्सा देश के अन्य अन्य राज्यों के हिस्से में आता है। केंद्र को हिमालय के बिगड़ते हालात के प्रति गंभीरता से चिंता जतानी चाहिए और मिशन मोड में हिमालयी राज्यों की समान विकास की शैली तैयार करनी चाहिए। इसके आधार यहां के लोगों के जीवनयापन की जरूरतों को जोड़कर प्रकृति के अनुरूप हों। जहां एक तरफ  देश की सेवा हो, वहीं हिमालय पारिस्थितिकी की दृष्टि से स्थिर रहे। हिमालय के बिगड़ते हालातों से देश की आर्थिकी व पारिस्थितिकी जुड़ी है।
  • हिमालय दिवस क्यों, इसकी जरूरत क्यों पड़ी।
  • हिमालय दिवस (नौ सितंबर) एक प्रार्थना है। इसका मकसद सामूहिक रूप से सभी वर्गो को जोड़कर हिमालय को बचाने का संकल्प व सामर्थ्‍य तैयार करना है। 2010 में सोचा हुआ यह दिवस आज व्यापक रूप ले चुका है। अब यह एक आंदोलन है, जिसमें हर वर्ग की भागीदारी है। इसे हिमालय के स्वास्थ्य से जोड़कर देखने की जरूरत है। इस बार हिमालय दिवस का विषय ‘हिमालय का विज्ञान’ है। सच यह है कि हम आज तक इसके विज्ञान को नहीं समझ पाए। इसीलिए हमारे विकास के कार्यक्रम इससे अछूते रहे है। दुष्परिणाम हमारे सामने है कि हमने हिमालय की स्थिरता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। हिमालय के विज्ञान को समझकर विकास कार्यों को जोड़ना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि हम विकास के लाभ के साथ साथ संतुलित हिमालय के बारे में भी गंभीर हों।

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