जानें, क्या है ब्रिटेन का नया संवैधानिक संकट, क्या है इसका भारत से कनेक्शन
ब्रिटेन की ससंद में ब्रेक्जिट पर शुरू हुई बहस अब एक नए मोड़ पर जा पहुंची है। इसके चलते ब्रिटेन एक नए संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है। इससे यहां की संसदीय परंपरा में एक नई बहस शुरू हो गई है। हालांकि, संसदीय परंपरा में यह गतिरोध आम बात है। लेकिन ब्रिटेन में ससंद की स्पष्ट सर्वोच्चता के कारण यह बहस खास महत्व रखती है।
ब्रिटेन में न्यायिक सक्रियता पर उठे सवाल
ब्रिटेन में संसदीय व्यवस्था है। यहां संसद सर्वोपरि है। इसलिए न्यायिक सक्रियता की स्थिति कम उत्पन्न होती है। अब तक के संसदीय इतिहास में इस प्रकार की न्यायिक सक्रियता वहां नहीं देखने को मिलती है। भारत की संसदीय परंपरा में तो कई वर्षों तक संसद बनाम सर्वोच्च न्यायल की सर्वोच्चता पर बहस चली। फिलहाल भारत ने अपनी व्यवस्था और संविधान के अनुरूप व्यवस्था स्थापति कर ली है। लेकिन ब्रिटेन में यह समस्या नई है। यह बड़ा संवैधानिक संकट का आकार ले सकती है।
आखिर क्या है मामला
दरअसल, ब्रेक्जिट मसले पर जूझ रहे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पांच हफ्ते के लिए ससंद को निलंबित कर दिया है। यह मामला संविधानविदों के बीच तूल पकड़ता जा रहा है। आखिर ब्रिटेन के संसदीय व्यव्सथा में कौन श्रेष्ठ है। प्रधानमंत्री के इस फैसले को लेकर भारतीय मूल के ब्रेक्जिट विरोधी जीना मिलर ने ब्रिटेन के हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनके मामले को बाद में सुप्रीम कोर्ट भेज दिया गया। ब्रिटेन की शीर्ष अदालत ने भारतवंशी की इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इस इसे असंवैधानिक बताया है। सुप्रीम कोर्ट के अध्यक्ष ब्रेंडा हेल ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि ससंद को निलंबित करने के लिए महरानी को सुझाव देने वाला फैसला गैरकानूनी है। उन्होंने कहा कि यह फैसला 11 न्यायधीशों ने सर्वसम्मिति से लिया गया है।
अपनी ही पार्टी के निशाने पर प्रधानमंत्री जॉनसन
इस फैसले को लेकर प्रधानमंत्री को अपनी ही पार्टी में ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कंजरवेटिव पार्टी के कई सदस्यों ने तीखी आलोचना की है। उधर, जॉनसन ने कहा है कि यूरोपीय यूनियन से अलगाव मसले पर मन मुताबिक फैसला लेने के लिए यह कदम उठाया है। इस फैसले का ब्रिटेन में विपक्षी सांसदों ने मुद्दा बना दिया है। बता दें कि ब्रेक्जिट के लिए 31 अक्टूबर की समय सीमा तय है।