रिसर्च में हुआ खुलासा, फसलों के अवशेष जलाने से दिल्ली में ही पड़ता है अलग-अलग प्रभाव
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Delhi Cm Arvind Kejriwal) प्रदूषण को दूर करने के लिए पंजाब और हरियाणा में जलाए जा रहे फसलीय अवशेष को मानते हैं, लेकिन एक रिसर्च में सामने आया है कि फसलों के अवशेष जलाने का प्रभाव पूरी दिल्ली में एक समान नहीं होता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) ने अपने अध्ययन में ये बात कही। संस्थान के सेंटर फॉर एटमासफेयरिक साइंसेज (सीएएस) के एसोसिएट प्रोफेसर विमलेश पंत ने 1 से 5 नवंबर 2017 और 20 से 25 अक्टूबर 2018 के दौरान पंजाब व हरियाणा में जलाए गए फसलीय अवशेष के दिल्ली में पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में अध्ययन किया।
दिल्ली के सभी जिलों में पड़ता है अलग प्रभाव
विमलेश पंत ने बताया कि नवंबर और अक्टूबर में हमने जो समय अध्ययन के लिए चुना, उस दौरान पंजाब और हरियाणा में सबसे ज्यादा फसलीय अवशेष जलाए जाते हैं। दिल्ली के सभी जिलों में इसके प्रदूषण (प्रदूषित कण पीएम 2.5) का प्रभाव अलग-अलग होता है। सबसे ज्यादा प्रभाव उत्तरी दिल्ली, उत्तर पूर्वी दिल्ली, सेंट्रल और पूर्वी दिल्ली में पड़ता है। इससे कम प्रभाव बाहरी और पश्चिमी दिल्ली में पड़ता है। दक्षिणी दिल्ली और दक्षिण पूर्वी दिल्ली में सबसे कम प्रभाव पड़ता है।
अध्ययन में किया डब्ल्यूआरएफ मॉडल प्रयोग
विमलेश ने बताया कि अमेरिका के वेदर रिसर्च एंड फोरका¨स्टग (डब्ल्यूआरएफ) मॉडल और नासा के सेटेलाइट के डाटा की सहायता से हमने रिपोर्ट तैयार की। नासा के सेटेलाइट से हमें यह जानकारी मिली कि पंजाब और हरियाणा में कहां-कहां फसलीय अवशेष जलाए गए। डब्ल्यूआरएफ मॉडल से हवा की दिशा और मौसम की कई तरह की गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली। डब्ल्यूआरएफ मॉडल का प्रयोग इसलिए किया गया क्योंकि यह अत्याधुनिक थ्रीडी तकनीक से लैस है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है।
क्यों पड़ता है अलग-अलग प्रभाव
विमलेश पंत ने बताया कि पंजाब और हरियाणा में फसलीय अवशेष के प्रदूषण का प्रभाव दिल्ली में इसलिए अलग-अलग होता है क्योंकि मौसम की स्थिति सभी जगहों पर एक समान नहीं होती हैं। विभिन्न जगहों पर हवा की गति अलग-अलग होती है। नवंबर 2017 के पहले सप्ताह में और अक्टूबर 2018 के तीसरे सप्ताह में की गई स्टडी में हवा की गति कम थी। यह उत्तर पश्चिमी दिशा से होते हुए दक्षिण पूर्वी दिशा की तरफ चल रही थी। दिल्ली में इसकी गति स्थिर थी। हवा की गति तेज नहीं होने से पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 जैसे प्रदूषित कण आगे नहीं बढ़ सके। इससे दिल्ली में उन जगहों पर फसलीय अवशेष को जलाने से पैदा हुए प्रदूषण का असर सबसे ज्यादा रहा, जिन जगहों पर हवा की गति स्थिर थी। उन्होंने बताया कि अध्ययन के लिए सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर रिसर्च ऑन क्लीन एयर (सीईआरसीए) से फंड मिला है।