उत्तराखंड में कितनी है गुलदारों की संख्या, अब उठेगा इससे पर्दा
गुलदारों की दहाड़ से थर्रा रहे उत्तराखंड में इनकी वास्तविक संख्या को लेकर 11 साल के लंबे इंतजार के बाद पर्दा उठेगा। 2015 के बाद अगले साल प्रदेश में होने वाली वन्यजीव गणना में स्पष्ट होगा कि इनकी संख्या बढ़ी है या घटी। अथवा किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा गुलदार हैं। फिर इसके आधार पर संबंधित क्षेत्रों में गुलदार-मानव संघर्ष थामने को कार्ययोजना तैयार कर धरातल पर उतारी जाएगी।
उत्तराखंड राज्य में वन्यजीवों की गणना हर साल हो, इसके लिए प्लान भी तैयार किया जा रहा है। वन्यजीवों के हमलों को देखें तो गुलदारों ने पहाड़ से लेकर मैदान तक नींद उड़ाई हुई है। आए दिन इनके हमलों की घटनाएं सुर्खियां बन रही हैं। स्थिति ये हो चली है कि गुलदार घरों के भीतर तक धमकने लगे हैं। ये ऐसे घूम रहे, मानो पालतू जानवर हों।
सूरतेहाल, राज्यवासी खौफ के साये में जीने को मजबूर हैं। वन्यजीवों के हमलों में करीब 85 फीसद घटनाएं गुलदारों की हैं। ऐसे में माना जा रहा कि हर परिस्थिति में खुद को ढालने वाले गुलदारों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। इनके बढ़ते हमलों के पीछे ये बड़ा कारण बताया जा रहा।
हालांकि, ये बात अलग है कि राज्य में वर्ष 2008 के बाद से अब तक गुलदारों की गणना ही नहीं हुई है। तब इनकी संख्या 2335 थी। इसके बाद इनकी वास्तविक संख्या व सर्वाधिक घनत्व वाले क्षेत्रों का पता न चलने से गुलदार-मानव संघर्ष थामने को ठोस पहल नहीं हो पा रही है।
अब गुलदारों की वास्तविक संख्या का जल्द ही पता चल जाएगा। राज्य में अगले साल वन्यजीवों की गणना के लिए कसरत शुरू कर दी गई है। इसमें मुख्य फोकस गुलदारों की गणना, सर्वाधिक घनत्व वाले क्षेत्रों पर रहेगा।
असल में अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में हर साल राज्य स्तर पर वन्यजीव गणना होती थी। उत्तराखंड बनने के बाद वर्ष 2003, 2005 व 2008 में ही वन्यजीव गणना हुई। अलबत्ता, बाघ व हाथियों की गणना राष्ट्रीय स्तर पर 2015 तक होती आई है।
हर साल गणना के हो रहे प्रयास
उत्तराखंड के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी के मुताबिक, राज्य स्तर पर वन्यजीव गणना में निरंतरता बनाए रखने को कदम उठाए जा रहे हैं। अगले वर्ष प्रदेशभर में वन्यजीवों की गणना की जाएगी। इसमें गुलदार समेत दूसरे वन्यजीवों की सही संख्या सामने आएगी। ऐसी व्यवस्था बनाई जा रही कि गणना का कार्य हर साल हो।