छठी मैया की आराधना का पर्व छठ पूजा का आज सुबह सूर्योदय के बाद अर्घ्य देने के साथ हुआ समापन…
सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का पर्व छठ पूजा का आज सुबह सूर्योदय के बाद अर्घ्य देने के साथ ही समापन हो गया। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत भी पूर्ण हो गया। व्रत रखने वाले लोगों ने अर्घ्य देने के बाद पारण कर अपना व्रत खोला। छठ पूजा का प्रारंभ 31 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ प्रारंभ हुआ था। 01 नवंबर को खरना था, उस दिन शाम को गुड़ वाला खीर खाकर लोगों ने निर्जला व्रत रखा था। 02 नवंबर को छठ वाले दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया।
फिर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्योदय के समय यानी आज सूर्य देव को अर्घ्य दिया गया। व्रती लोगों ने संतान के दीर्घ और सुखी जीवन की कामना की। वहीं, जिनको संतान की चाह है, उन लोगों ने छठी मैया और सूर्य से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा।
ऐसा है छठी मैया का स्वरूप
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा है। षष्ठी देवी बालकों की रक्षा’ करती हैं और उन्हें दीर्घ जीवन देती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा होती है। पुराणों में छठी मैया को मां कात्यायनी का स्वरूप माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान सूर्य की बहन छठी मैया हैं।
छठ पूजा का लाभ
1. छठी मैया की पूजा करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
2. नियम पूर्वक व्रत करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है।
3. ऐसी मान्यता है कि छठी मैया और सूर्य देव की पूजा से सैकड़ों यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
4. इस पूजा और व्रत से नि:संतान लोगों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
5. संतानों की सर्व मंगलकामना के लिए भी छठ पूजा और व्रत को किया जाता है।