11 व 12 वीं के कुछ छात्रों ने मिलकर प्लास्टिक के कचरे से बनाया डीजल और पेट्रोल…
प्लास्टिक अभी पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। इसे पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है क्योंकि यह जल्दी खत्म नहीं होता। लेकिन, अब प्लास्टिक भी हमारे लिए उपयोगी हो सकता है। ये साबित किया है 11वीं और 12वीं के कुछ होनहार शोधार्थियों ने।
इन छात्रों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे प्लास्टिक कचरे से पेट्रोल, डीजल व पेट्रो केमिकल्स बनाने के साथ ऑयस्टर मशरूम का भी उत्पादन किया जा सकेगा। इस तकनीक को बीते सितंबर में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने नेशनल इनोवेशन अवार्ड से सम्मानित किया है। केंद्र सरकार ने लद्दाख में वनस्पति की कमी के साथ प्लास्टिक के ढेर को देखते हुए उन्हें वहां कार्य करने की सलाह भी दी है।
प्रोजेक्ट के सदस्य मुजफ्फरपुर जिले के दामुचक निवासी होलीक्रास में 12वीं के छात्र आशुतोष मंगलम व एमडीडीएम कॉलेज में 11वीं की छात्रा सुरभि गोस्वामी ने बताया कि प्लास्टिक कचरे से पेट्रोल, डीजल और पेट्रो केमिकल्स तैयार होने के बाद जो कचरा बचता है उससे टाइल्स व ईंट भी बन जाती है। प्लास्टिक की बोतलों में ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन भी कर सकते हैं।
पीएमओ ने भी की सराहना
प्रोजेक्ट पर काम करने वाली टीम ग्रेविटी एनर्जी रिसर्चर्स के मेंटर कीर्ति भूषण भारती सिवान के रहने वाले हैं। उनकी टीम में मुजफ्फरपुर के आशुतोष मंगलम, सुमित कुमार, मो. हसन, जिज्ञासु, सुरभि गोस्वामी, अमन व विनीत शामिल हैं। मई से इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
इनका कहना है कि उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, केंद्रीय कृषि मंत्री व पेट्रोलियम मंत्री के अलावा पीएमओ ने भी तकनीक की सराहना की है। नई दिल्ली में कई बार प्रदर्शन के बाद प्रोजेक्ट टीम तकनीक को पेटेंट कराने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
तकनीक की खासियत
टीम का दावा है कि प्लास्टिक कचरे से पेट्रोल, डीजल बनाने की अन्य तकनीक से यह बेहतर है। इसमें ईथेन को आइसो ऑक्टेन में बदलने से उसकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। जबकि अन्य तकनीक के पेट्रो उत्पाद की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं होती।
इनकी तकनीक से एक टन प्लास्टिक कचरे से 800 लीटर पेट्रोल अथवा 850 लीटर डीजल के साथ एलपीजी निकाली जा सकेगी। जबकि, पेट्रो केमिकल्स 500 लीटर तैयार होंगे तथा एलपीजी भी निकलेगी।
वहीं, एक लीटर वाली बोतल में 20 रुपये की लागत पर चार किलोग्राम ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन होगा। पंद्रह दिनों पर एक किलो मशरूम तैयार होगा।
सालाना 50 हजार लोगों को मिलेगा रोजगार
टीम के सदस्यों के मुताबिक पेट्रोल, डीजल तैयार करने के लिए कन्वर्जन यूनिट पाइरोलिसिस प्लांट लगाना होगा, जिसे प्रोजेक्ट टीम अपने तरीके से डिजाइन करेगी। एक यूनिट लगाने में दो से तीन करोड़ की लागत का अनुमान है। इसमें 50 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा और लगभग 22 करोड़ रुपये की कमाई होगी। राज्य व केंद्र सरकार के साथ टाईअप कर यह प्रोजेक्ट लगाया जा सकेगा। बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने प्रोजेक्ट टीम को वार्ता के लिए आमंत्रित भी किया है।
कहा-प्रोफेसर ओमप्रकाश राय ने
‘प्लास्टिक पर्यावरण का बड़ा दुश्मन है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, दिल्ली में हर रोज 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन व मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है। यह स्थिति भयावह है। ऐसे में इस तरह के शोध को अगर सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा रहा तो यह सराहनीय है।’
-प्रो. ओमप्रकाश राय (भौतिकी में गोल्ड मेडलिस्ट) प्राचार्य, एलएस कॉलेज, मुजफ्फरपुर