खेतों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से राष्ट्रीय पक्षी मोर के जीवन पर मंडरा रहा खतरा
खेतों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से राष्ट्रीय पक्षी मोर के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। दरअसल, बिजाई के दौरान किसान गेहूं के बीजों को बीमारी आदि से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें खाकर मोर बेहोश हो जाते हैं और कुत्ते आदि दूसरे जानवरों का शिकार बन जाते हैं। अगर यूं ही चलता रहा तो बहुत जल्द मनमोहक नृत्य और खूबसूरत पंख के लिए राष्ट्रीय पक्षी बने मोर की पिहू-पिहू शांत हो सकती है।
मोरों को इस खतरे से बचाने का संकल्प लिया है रियल सोसाइटी प्रवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल के चेयरमैन हंसराज ने। वह घायल मोरों को बचाने के लिए जी जान से जुटे हैं। वह अब तक लगभग 500 मोरों की जान बचा भी चुके हैं। उन्होंने घायल मोरों का उपचार के लिए एंबुलेंस और दवाओं की व्यवस्था भी की हुई है।
20 साल से जुटे हैं मुहिम में
हरियाणा के भिवानी जिले के गांव ढाणी हरि सिंह गुजरानी निवासी मास्टर हंसराज पिछले 20 साल से पूरे प्रदेश में मोर को बचाने की मुहिम में जुटे हैं। उनका कहना है कि मोरों के मरने की घटनाएं पिछले सात-आठ साल में बढ़ी हैं। बहुत से ऐसे गांव हैं, जहां मोर नाममात्र के ही बचे हैं। जीटी रोड बेल्ट में तो पहले से ही मोर बहुत कम हो चुके हैं। दादरी में कपूरी की पहाड़ी में अभी 250 से ज्यादा मोर संरक्षित हैं। हालांकि, किसी जमाने में यहां पर तीन से चार हजार मोर होते थे।
हंसराज ने बताया कि लोहारू, डूडीवाला, अटेला, ढिगावा, बाढड़ा, कालूवाला सहित विभिन्न इलाकों से मोरों के घायल होने की शिकायतें आती हैं। गेहूं की बिजाई के सीजन में हर बार 100 से 150 मोर घायल हो जाते हैं, जिनमें से 70 फीसद की समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण मौत हो जाती है।
मोर की गर्दन की होती है तस्करी
हंसराज के अनुसार कुछ, घुमंतू जाति के लोग भी मोरों का शिकार करते हैं। वह इसके पंख बेच देते हैं। इसके अलावा विदेशों में मोर की गर्दन की तस्करी भी की जाती है।
जुताई के समय करें दवा का इस्तेमाल
हंसराज ने किसानों से अपील की है कि मोर किसानों की फसलों को दीमक से बचाते हैं और सांपों से भी रक्षा करते हैं। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे बिजाई की बजाय खेत की जुताई के समय कीटनाशक का प्रयोग करें। इससे काफी हद तक मोरों को बचाया जा सकता है।