ढाई करोड़ साल पुरानी इस झील में नाव चलना है मुश्किल, फिर भी देखने के लिए आते है लोग
दुनिया की छत के नाम से जाने जाती मध्य एशियाई देशों में फैले पामीर के पठार को कहा जाता है। इन्हीं पहाड़ों के बीच, समुद्र तल से करीब 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है कराकुल झील। ये दक्षिण अमरीका की मशहूर टिटिकाका झील से भी ऊंचाई पर है। ये विशाल झील, करीब ढाई करोड़ साल पहले धरती से उल्कापिंड के टकराने की वजह से बनी थी। कराकुल झील 380 वर्ग किलोमीटर में फैली है। कई जगहों पर ये 230 मीटर तक गहरी है। ये झील बेहद खूबसूरत हैं, चारों तरफ से बर्फीले पहाड़ों और ऊंचे रेगिस्तानी इलाकों से घिरी हुई है। आप पामीर हाइवे के जरिए कराकुल झील तक पहुंच सकते हैं। ये झील ब्रितानी नक्शानवीसों ने इस झील का नाम महारानी विक्टोरिया के नाम पर रखा था। बाद में सोवियत संघ ने इसका नाम कराकुल यानी काली झील रख दिया। हकीकत ये है कि ये झील दिन में कई बार अपना रंग बदलती है। कभी इसका पानी नीला, तो कभी फिरोजी, कभी गहरे हरे रंग का तो शाम के वक्त गहरा काला दिखता है।
जोखिम भरे सफर के शौकीन लोग दूर-दूर से इस झील को देखने आते हैं। कराकुल झील का सबसे करीबी कस्बा है ताजिकिस्तान का मुर्गब। सीमा पार किर्गिजिस्तान का ओस भी झील के पास ही पड़ता है। नमक ने इस झील की घेरेबंदी कर रखी है। इस झील से पानी निकलकर बाहर नहीं जाता। नतीजा ये कि कराकुल झील एशिया की सबसे खारी झील है। इस के पानी में इतना नमक है कि इस में एक खास तरह की मछली के सिवा कोई जीव नहीं पाया जाता। कराकुल झील में केवल स्टोन लोच नाम की मछली ही पायी जाती है, जो बलुआ तलछट वाली झीलों में आबाद हो सकती है।
भले ही कराकुल में जीव न पाए जाते हों, लेकिन, इसके बीच में निकल आए द्वीपों और आस-पास के दलदली किनारों पर दूर-दूर से परिंद आते हैं। इनमें हिमालय पर्वत पर रहने वाले बाज और तिब्बती तीतर शामिल हैं। कराकुल झील इतनी खारी है कि इसमें नाव चलाना नामुमकिन है। अगर आप फिर भी इसमें नाव खेने की कोशिश करते हैं, तो उसके उलट जाने की पूरी आशंका होती है। जिस तरह मध्य-पूर्व में मृत सागर या डेड सी है, उसी तरह की है कराकुल झील। मृत सागर के पानी में भी इतना नमक है कि वहां कोई जीव नहीं पल सकता। यही हाल कराकुल का भी है। फिर भी इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। आस-पास के लोग यहां गर्मियों में जुटते हैं। यहां तक पहुंचने का एक बार का सफर बरसों तक याद रखने वाला तज़ुर्बा होता है।