मंजूर पश्‍तीन की गिरफ्तारी के खिलाफ लंदन में हुआ प्रदर्शन, आजाद पाकिस्‍तान को किया था खारिज

लंदन में पाकिस्‍तान के खिलाफ हो रहा प्रदर्शन पूरी दुनिया के सामने एक मांग है जो खैबर पख्‍तूख्‍वां में रहने वाले लोग उठा रहे हैं। यह मांग पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट के नेता मंजूर पश्‍तीन की रिहाई तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह मांग इस पूरे क्षेत्र की आजादी से भी जुड़ी है। आपको बता दें कि मंजूर को पाकिस्‍तान के पेशावर में 27 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। उनके ऊपर राजद्रोह का आरोप है। मंजूर और उनके संगठन पर भारत से फंड लेकर पाकिस्‍तान सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का भी आरोप लग चुका है।

हालां‍कि संगठन से जुड़े नेता इन आरोपों को हमेशा से ही खारिज भी करते आए हैं। इतना ही नहीं भारत से फंड लेने के आरोपों पर पीटीएम के सांसद मोहसिन डावर ने सरकार को संगठन से जुड़े सभी खातों की जांच कराने की खुलेआम चुनौती दी थी। जहां तक मंंजूर की गिरफ्तारी की बात है तो पूरे क्षेत्र में उनकी गिरफ्तारी के साथ ही प्रदर्शन शुरू हो गए थे। गौरतलब है कि लंदन में पहले भी कई बार पाकिस्‍तानी सेना के तानाशाही रवैये को लेकर प्रदर्शन हो चुका है। ये लोग पहले भी कई मर्तबा अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरते आए हैं।

 

आपको बता दें कि बलूचिस्‍तान के अलावा पाकिस्‍तान के कब्‍जे वाले गुलाम कश्‍मीर में भी वर्षों से पाकिस्‍तान की सरकार के खिलाफ आजादी की मांग उठती रही है। इन मांगों को पाकिस्‍तान की सरकार सेना के जरिये हर बार कुचलवाती रही है। लंदन में ये मांग उठाने वाले पश्‍तूनों की बात करें तो ब्रिटेन में करीब एक लाख पश्‍तून रहते हैं। पश्‍तूनों की पश्चिम में यह सबसे बड़ी तादाद है।

पश्‍तूनों द्वारा लंदन में किया जा रहा है प्रदर्शन कई मायनों में बेहद खास है। इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये भी  कि पश्‍तूनों की गिनती पाकिस्‍तान में अल्‍पसंख्‍यक के तौर पर होती है। यही वजह है कि जब से पाकिस्‍तान बना है तब से इनके ऊपर जुल्‍म किया जा रहा है और इनकी आवाज को दबाने का काम किया जाता रहा है। पाकिस्‍तान में पश्‍तून समुदाय सिंध, पंजाब, कराची और लाहौर तक फैला है। इसके अलावा भारत के उत्‍तर प्रदेश में भी पश्‍तून रहते हैं।

पश्‍तूनों के पाकिस्‍तान के खिलाफ प्रदर्शन की यदि बात करें तो यह पाकिस्‍तान के बनने के साथ ही शुरू हो गया था। इसका नेतृत्‍व मिर्जाली खान ने किया था। खान उस समय पश्‍तनों की आवाज उठाने वाले बड़े नेता थे। उन्‍होंने पाकिस्‍तान के देश के रूप में सामने आने को सिरे से खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं खान और उनके समर्थकों ने पाकिस्‍तान की सरकार के खिलाफ गुरिल्‍ला वार तक शुरू कर दिया था। 1950 में इन्‍होंने पाकिस्‍तान को दरकिनार कर पश्‍तूनिस्‍तान का निर्माण किया था। लेकिन वक्‍त के साथ पश्‍तूनिस्‍तान को बनाए रखने का भी सपना अधूरा रह गया। इसकी वजह वजीरिस्‍तान में पश्‍तूनों की संख्‍या का कम होना और दूसरा कुछ लोगों का पाकिस्‍तान की सरकार को समर्थन देना भी था।

बहरहाल, यहां पर आपके लिए ये भी जान लेना बेहद जरूरी है कि 9/11 हमले के बाद पाकिस्‍तान ने तालिबान को खत्‍म करने के नाम पर पश्‍तूनों और बलूचों पर जबरदस्‍त हमले किए थे। ऑपरेशन जर्ब ए अज्‍ब के तहत इन लोगों को सेना ने काफी संख्‍या में निशाना बनाया। इसके बाद फाटा में रहने वाले पश्‍तून काफी बड़ी संख्‍या में यहां से पलायन कर गए। पश्‍तून इस लिए भी सरकार से खफा हैं क्‍योंकि पाकिस्‍तान सरकार न सिर्फ उनकी जमीन से उन्‍हें ही खदेड़ने में लगी हुई है बल्कि उनको विभिन्‍न आरोपों में फंसा कर जेल में भी ठूंस रही है। मंजूर पश्‍तीन इसका ही एक उदाहरण है।

वर्ष 2019 में मंजूर पश्‍तीन पश्‍तून मूवमेंट के नेता के तौर पर उभरे थे। उन्‍होंने नकीबुल्‍ला की हत्‍या के खिलाफ हुए  प्रदर्शनों का नेतृत्‍व किया था। तब से ही वो पाकिस्‍तान सरकार और सेना की आंखों की किरकिरी बने हुए थे।नकीबुल्‍ला की कराची में पुलिस एनकाउंटर में हत्‍या कर दी गई थी। उस वक्‍त देश के अलग-अलग हिस्‍सों में पुलिस और सेना के खिलाफ जबर्दस्‍त प्रदर्शन हुए थे।

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