इस पूरे क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदमों को रोकने में सहायक साबित होगा राष्ट्रपति ट्रंप का ये दौरा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के मायने हर किसी के लिए काफी खास रहे हैं। ये दौरा भले ही 36 घंटे का रहा, लेकिन इस दौरान दोनों देशों के बयानों में जो कुछ निकलकर आया उस लिहाज उनके इस दौरे को सफल कहा जा रहा है। भारत और अमेरिका के बीच इस दौरे में सुरक्षा के क्षेत्र में अहम समझौते हुए हैं। इसके अलावा भी दोनों ही देशों ने विवादों के बावजूद कई मुद्दों पर आगे बढ़ने की अपनी बात दोहराई है। उनके इस दौरे को लेकर दैनिक जागरण ने अमेरिका में बतौर राजदूत रह चुकीं मीरा शंकर से बात की। वे ट्रंप के इस दौरे को हर लिहाज से भारत के लिए सफल मानती हैं। आपको बता दें कि मीरा अमेरिका में तैनात रहीं दूसरी भारतीय राजदूत हैं। उनसे पहले विजय लक्ष्मी पंडित ने ये जिम्मेदारी निभाई थी। मीरा 2009-2011 तक अमेरिका में भारतीय राजदूत के तौर पर तैनात थीं।
भारत-अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी
मीरा मानती हैं कि ट्रंप का ये दौरा इस बात का गवाह है कि दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी और अधिक मजबूत हुई है। उनके मुताबिक दोनों ही देशों के सामने भारत-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में चीन के बढ़ते कदमों को रोकना एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए अमेरिका को भारत का साथ चाहिए, जिससे इस क्षेत्र में शक्ति का संतुलन बनाकर रखा जाए। इसका एक अर्थ ये भी है कि दोनों ही देश चाहते हैं कि इस क्षेत्र में चीन की दादागिरी न चल सके।
आतंकवाद से निपटने के लिए आए करीब
आतंकवाद और सुरक्षा के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच हुई बातचीत के बाबत मीरा ने कहा कि इस मुद्दे पर भारत और अमेरिका काफी करीब आए हैं और एक दूसरे को सहयोग कर रहे हैं। दोनों ने ही इस बाबत सहयोग को आगे बढ़ाने की भी बात कही है जो भारत के लिए काफी सकारात्मक है। देानों ही देशों ने इसको जड़ से खत्म करने की बात दोहराई है। दोनों ही देश इस दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं।
सुरक्षा के मुद्दे पर समझौता
सुरक्षा की बात करें तो दोनों ही देशों के बीच हेलीकॉप्टर को लेकर हुआ समझौता काफी खास है। इससे भारतीय सुरक्षा और पुख्ता हो सकेगी। मीरा मानती हैं कि ट्रंप का ये दौरा दोनों देशों के बीच रिश्तों में लॉन्ग टर्म की मजबूती को भी कायम करने में सहायक होगा। उनके मुताबिक अमेरिका-भारत के बीच हुआ रक्षा समझौता इसलिए भी खास है क्योंकि अब से पहले भारत में हथियारों की मैन्यूफैक्चरिंग या डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग को लेकर कोई खास तरक्की नहीं हुई थी, जो इस बार होती हुई दिखाई दे रही है। हालांकि मीरा ये भी ट्रंप के इस दौरे में आर्थिक समझौते को लेकर जो भारत की उम्मीद थी, वो इस बार पूरी नहीं हुई है। लेकिन ट्रंप और भारत दोनों ने ही माना है कि इस पर वार्ता न तो खत्म हुई है न ही रुकी है, बल्कि आगे भी इस पर वार्ता जारी रहेगी। उन्होंने उम्मीद जताई है कि भविष्य में इसको लेकर भी दोनों देशों के बीच कोई समझौता हो सकता है।
पाकिस्तान से जुड़े प्रश्न पर क्या कहा
पाकिस्तान और आतंकवाद से जुड़े एक प्रश्न के जवाब में मीरा ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने संयुक्त बयान में पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहे सभी आतंकी संगठनों का नाम लिया। उनके मुताबिक अमेरिका और एफएटीएफ के दबाव के बाद ही पाकिस्तान की कोर्ट ने हाफिज सईद जैसे आतंकी को सजा सुनाई। वहीं वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक हालत भी बेहद खराब है। ऐसे में यदि कार्रवाई नहीं करते हैं तो एफएटीएफ उन्हें काली सूची में डाल सकता है। यदि ऐसा हुआ तो वहां पर निवेश के रास्ते बंद हो जाएंगे और पाकिस्तान बाहर से भी कर्ज नहीं ले सकेगा। लिहाजा पाकिस्तान पर अमेरिका ने दबाव बनाया हुआ है। वहीं एक सच्चाई ये भी है कि पाकिस्तान अमेरिका की भी जरूरत है। अफगानिस्तान में चल रही शांति वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका खास है। मीरा मानती हैं कि भारत को ये देखना होगा कि इन सबसे भारत और अमेरिका के रिश्तों पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े।
पूर्व की मजबूत नींव पर बेहतर होते संबंध
यह पूछे जाने पर कि बुश और ओबामा के समय में भारत-अमेरिका संबंध ज्यादा मजबूत थे या अब, मीरा का कहना था कि वर्तमान के रिश्तों की बुनियाद पूर्व के मधुर संबंध ही रहे हैं। भारत और अमेरिका में सरकार कोई भी रही हो, सभी ने आपसी सहयोग को बढ़ाने की ही कोशिश की है। लिहाजा यहां पर ट्रंप प्रशासन की पूर्व के बुश या ओबामा प्रशासन से तुलना करना गलत होगा। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि बुश के समय में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु संधि हुई थी। ओबामा दो बार भारत आए और रक्षा के क्षेत्र में अपने सहयोगी देशों के बराबर ही दर्जा देने का काम किया। ओबामा ने खुलेतौर पर भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन करने का एलान किया था। इसके अलावा एनएसजी में भी उन्होंने भारत का भरपूर समर्थन किया था।