कृषि मंत्री जेपी दलाल में जाट नेतृत्व की दिखी नई संभावनाएं : हरियाणा
हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा ताऊ देवीलाल के छोटे बेटे चौधरी रणजीत सिंह चौटाला और पूर्व सीएम स्वर्गीय बंसीलाल के चुनाव एजेंट रह चुके कृषि मंत्री जेपी दलाल में जाट नेतृत्व की नई संभावनाएं देख रही है। हरियाणा के सीएम रह चुके ओमप्रकाश चौटाला के छोटे भाई रणजीत चौटाला सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीते थे और मुख्यमंत्री मनोहर लाल की कैबिनेट में बिजली व जेल मंत्री के तौर पर पावरफुल मिनिस्टर हैं।
अपने राजनीतिक कौशल व जोड़तोड़ की बदौलत ताऊ देवीलाल ने वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया था, और कई राज्यों में मुख्यमंत्री उन्हीं की देन थे। बंसीलाल का पूरा चुनावी सिस्टम जेपी दलाल संभालते रहे हैं। देश की राजनीति में ताऊ देवीलाल एक बड़ा नाम है। उनका राजनीतिक परिवार आजकल बिखरा हुआ है। बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला और पोते अजय सिंह चौटाला जहां जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में जेल में बंद हैं, वहीं छोटे पोते अभय सिंह चौटाला ने तमाम राजनीतिक बाधाओं को पार करते हुए पूरी मजबूती के साथ इनेलो की बागडोर संभाली हुई है।
अजय सिंह चौटाला के बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला जनननायक जनता पार्टी बनाकर इनेलो से अलग हो चुके और अब मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार में बराबर के साझीदार हैं। हरियाणा की राजनीति में यह पहला मौका है, जब ताऊ देवीलाल के परिवार के पांच सदस्य इस बार विधानसभा में चुनकर आए हैं। इनमें रानियां से खुद चौ. रणजीत चौटाला, ऐलनाबाद से अभय सिंह चौटाला, बाढ़डा से अजय सिंह चौटाला की पत्नी नैना सिंह चौटाला, उचाना से अजय सिंह के बेटे दुष्यंत चौटाला और डबवाली से अमित सिहाग। रणजीत निर्दलीय, अभय सिंह इनेलो के टिकट पर, नैना चौटाल व दुष्यंत सिंह जजपा तथा अमित सिहाग कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं।
हरियाणा की सियासत में ताऊ देवीलाल की राजनीतिक विरासत के कई बड़े वारिस हैं। अभय सिंह चौटाला उनके नाम का झंडा लेकर चलते हैं तो दुष्यंत चौटाला अपने समर्थकों से यह कहलवाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते कि उनमें देवीलाल की छवि दिखती है। यह भी पहला मौका है कि परिवार और पार्टी में बिखराव के बाद अभय सिंह चौटाला अपनी पार्टी के एकमात्र विधायक चुनकर आए, लेकिन उन्होंने जिस तरह से विधानसभा में सरकार की घेराबंदी की, उसे देखकर पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में यह चल पड़ा कि अभय में कुछ तो बात है।
बहरहाल, बात रणजीत चौटाला की हो रही है। वैसे तो दुष्यंत चौटाला भी भाजपा सरकार में साझीदार हैं, लेकिन भाजपा की निगाह रणजीत चौटाला पर टिकी हुई है। भाजपा के पास ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला, चौधरी बीरेंद्र सिंह और महीपाल ढांडा के रूप में जाट चेहरों की कमी नहीं है। धनखड़ और कैप्टन ने पार्टी को अपने खून से सींचा है। भले ही वे चुनाव हार गए, लेकिन सरकार और संगठन में उनकी मजबूत ताकत है, लेकिन पिछले दिनों सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट पर हुई रणजीत सिंह चौटाला की रैली में जिस तरह से भाजपा अध्यक्ष जेपी नड़्डा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ शिरकत की, वह पार्टी की अंदरूनी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
भाजपा चाहती है कि रणजीत चौटाला को आगे कर ताऊ देवीलाल के बिखरे हुए वोट बैंक को भाजपा के झंडे के नीचे एकजुट किया जाए। ताऊ देवीलाल ने 1986-87 में जब न्याययुद्ध चलाया था, तब उसके प्रमुख रणनीतिकारों में रणजीत चौटाला सबसे आगे थे। यह अलग बात है कि राजनीतिक जोड़तोड़ में ओमप्रकाश चौटाला का भी कोई जवाब नहीं है। भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद नड्डा पहली बार किसी गैर भाजपाई नेता की रैली में रानियां पहुंचे हैं। भाजपा की यही रणनीति कृषि मंत्री जेपी दलाल के माध्यम से है, ताकि भिवानी जिले में स्व. बंसीलाल के बिखरे वोटबैंक को भाजपा अपनी झोली में डाल सके।
भाजपा हालांकि दुष्यंत चौटाला को भी नाराज होने का कोई मौका नहीं देना चाह रही, लेकिन जस तरह से जजपा के विधायकों में आपस में मनमुटाव के हालात हैं, उसे देखते हुए भाजपा को लगता है कि सारा दांव अकेले दुष्यंत पर लगाना उचित नहीं है। यह अलग बात है कि अभय सिंह चौटाला उस राजनीतिक शख्सियत का नाम है, जो हारी हुई बाजी को किसी भी समय अपनी जीत में बदल देने का माद्दा रखते हैं, लेकिन अब आने वाला समय बताएगा कि इस राजनीतिक खेल में भाजपा और जजपा में कौन कौन सेर है और कौन सवा सेर।